हाय रे पानी!
तुम्हारे बिना सब सूना
आदमी बेहाल बेकल
झगड़ा छिड़ गया
सर फूट गया
धूप, हवा, पानी
सबकी अमानत है
सृष्टि की देन है
एक का नहीं
सबका है
रोटी तो
आग पर सेंकी जाती है
पानी पर
रोटी गल जाती है
धैर्य से काम लो
रास्ता निकालो
पानी सबको चाहिए
इसके बिना कोई रह नहीं सकता
पानी का दोहन नहीं करो
यह राष्ट्रीय संपदा है
इस पर सबका अधिकार है
समानता का युग है
मिल बैठकर रास्ता निकालो
सभी नदियों को जोड़ो
अजस्र धारा बहाओ
पानी सबको मिले - सबका काम चले
सिर्फ कावेरी के लिए
क्यों झगड़ते हो
रोटी बांटकर खाओ
समरस कविता संग्रह से उद्धृत
Tuesday, December 16, 2008
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2 comments:
बहुत बढ़िया!
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चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/
बहुत सुंदर लिखा है...बधाई।
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