शब्द
एक सेतु है
संप्रेषण है
अमर है
व्योम में
सदा विद्यमान है
एक जाल है
जंजाल है
फंसाता है
उबारता है
रक्षक है
भक्षक है
अलंकृत करता है
नंगा करता है
अभिशाप है
वरदान है।
समरस कविता संग्रह से उद्धृत
Monday, December 15, 2008
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