Sunday, December 14, 2008

अम्मां-मां

ममतामयी करुणामयी
दयामयी
अम्मां-मां-मां
बेटे की अम्मां
बहू की अम्मां
पोते-पोतियों की अम्मां
मेरी, तेरी, सबकी अम्मां
क्या है उनमें
हिमालय की ऊंचाई है
सागर की गहराई है
प्यार भरा है
दुलार भरा है

x x x

अम्मां इस घर में
पचास की दशक में आयीं
उस समय वह
किसी की बहू थीं
घर में सास-ससुर का संरक्षण था
ननदें थीं
दाबन में रहना था

x x x

और आज
इस शती के अंत में
अम्मां के आगे-पीछे
बहुएं हैं बेटे हैं
पोते-पोतियां हैं
घर-आंगन भरापूरा है
वह जग-जननी हैं
जीवन-यज्ञ में
आहुतियां देती रहीं
अपने को होम दिया
मन की पीड़ा
मन की व्यथा वेदना
कहें तो किससे
नीलकंठ बनकर
गरलपान करती रहीं
दोनों हाथों लुटाती रहीं
प्यार, दुलार, पुचकार
अम्मां-मां-मां।

समरस कविता संग्रह से उद्धृत

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