Friday, December 5, 2008

बोलती बंद

गफूर भाई तेज तर्रार किस्म के आदमी हैं। लोग उनकी उम्र पूछते हैं, "दादा हो, आपकी उम्र क्या हुई।" तपाक से कह बौठते हैं, "जरा तू ही बता, मेरी उम्र क्या हो सकती है?" "बड़का भूकम्प के वख्त आप कित्ते साल के थे।" "उस वख्त की बात करते हो, दो जमात पास कर गया था।"
"दादा, गजब की बात करते हो!"
"क्या हुआ बे!"
"दो जमात से बात कहां खुलती है कि आप कित्ते बरस के थे।"
"ओ! तो तुम उमर जानना चाहता है। अब समझा। यही बारह-चौदह साल का होगा।"
फिर गफूर भाई बुदबुदाते हुए आगे बढ़ गए। कम्बखत सब उमर पूछते रहता है। क्या बूढ़ा होना गुनाह होता है। आज बच्चा पैदा होता है, बड़ा होता है। जवान होता है। तालीम हासिल करता है। निकाह होता है। नौकरी लग जाती है। अपनी औलाद की परवरिश करता है। उसी तरह तुम भी बूढ़ा होगा। बच्चा, बूढ़ा, यह सिलसिला तो लगा है।
छड़ी टेकते, घर की ओर डेग भरते हुए, गफूर भाई बढ़ते जा रहे थे। पाकेट में पैसा टटोला। खुशी हुई। "अमां, यार अपने को कहा। तो क्या कुछ हो जाय। "सुधा" का काउंटर आगे आ रहा था। रहमत भाई, सुधा काउंटरवाले उनको देख रहे थे। टोक दिया। "भाई जान, कहां गए थे। अकेले चलते हैं। किसी बच्चे को संग क्यों नहीं कर लिया?" इस पर आव देखा न ताव। उस पर गफूर भाई, बिगड़ बैठे।
गजब के तुम हो? तुम्हारा जर्जर बदन देखकर कोई चेताता है। रहमत भाई ने तुम्हारी भलाई की बात की है। और तुम बिगड़ बौठे, उन पर।
जाने दो, देखो रहमत भाई से पूछो न, क्या सब है! रहमत भाई से रू-ब-रू होते ही पूछ बैठे, "क्या सब है?"
"सब कुछ है।" रहमत भाई का जवाब मिला।
फिर गफूर भाई की मजबूरी का आलम आ खड़ा हुआ। ससुरी सरकार जहां-तहां अपने " सुधा" सेल पाइंट काउंटर एक ही डिजाइन की बनाती है। राजधानी से छोटे बड़े शहर तक फैला रखी है। इसके ब्रांड की तारीफ गुनते रहे। कमाल का पेड़ा होता है। पांच से लेकर चौदह रूपये तक का, स्ट्राबेरी का आइसक्रीम। रसगुल्ला, दही, लस्सी..
गफूर भाई की मजबूरी रहमत मियां ताड़ गए। रूकिये मैं आ जाता हूं। और गफूर भाई का हाथ पकड़ कर ऊपर ओटे पर चढ़ा लिया। गफूर भाई एक ओर खड़े थे। दो ग्राहक आ गए। एक ने एक लीटर दूध की मांग की। पाकेट से नंबरी निकाला। इस पर रहमत मियां ने तपाक से कहा। "नंबरी का खुदरा नहीं है। चट से ग्राहक ने कहा, "पचास देता हूं।" दूध लिया खुदरा वापसी में रहमत भाई ने दो टॉफी, नोट और सिक्का दिया था।
"दूध का कित्ता पइसा काटे।"
"चौदह रुपये।"
"ज्यादा क्यों?"
"दाम बढ़ गया है।" वह वापसी पैसे को मिलाने लगा। दस का नोट तीन है, एक पांच का है। "कित्ता हुआ?" रहमत भाई ने पूछा।
"पैंतीस।" उस लड़के ने कहा।
"ठीक है, और दो टॉफी का दाम एक रुपया। हुआ न छत्तीस।"
उसके बाद दूसरे ग्राहक से निबटने के बाद गफूर भाई से पूछा, "आपको क्या चाहिए?"
"लस्सी।"
"नहीं है।"
"पेड़ा ले लें, चौदह का है।"
गफूर भाई रूक गए।
"फिर आइसक्रीम है, पांच, दस और चौदह का।" रहमत भाई ने कहा।
"दस का दे दो।" गफूर भाई बोले। रहमत भाई ने दस का आईसक्रीम आगे किया। प्लास्टिक का चम्मच दिया। फिर गफूर भाई बिफर पड़े। रहमत भाई से पूछा। यहां-वहां चिपटा हुआ आइसक्रीम का खाली कप। लगता है चादर सफेद बिछी है। डस्ट बिन क्यों नहीं रखते? गफूर भाई ने सवाल रक्खा!
क्या करें साहब। मुख्यमंत्री का बेल्ट है। गली, कूची सब बन गया है। यह रास्ता फ्रोफेसर कॉलोनी जाती है। यहां के लोग जदयू के नहीं हैं। यहां नगरपालिका का झाड़ू देनेवाला भी नहीं आता है।
गफूर भाई के नहाने का वक्त हो रहा था। बाल बनाने गए थे। गप्प भी चल रहा था। आइसक्रीम चाट गए। छड़ी हाथ में ली। ओटा से उतर गए। फिर आगे कदम-ब-कदम डेग बढ़ाते हुए घर की ओर जा रहे थे।
फिर भीतर की आवाज आई, तुम्हारा चटोरपन गया नहीं। चौदह का पेड़ा ले लेते तो घर भर खाते।
सैलून से हजामत बनाकर लौटे हो। बीवी जान को जवाब देना। वहां भी हजामत बनेगी।
घंटी बजाई। किवाड़ खुला। पंखा खोलकर बैठ गए। उधर से पोते-पोतियां आईं। बीवी जान आईं । पूछा, "कुछ लाये नहीं!" गफूर भाई की घिग्घी बंध गई।

1 comment:

bijnior district said...

बहुत बढिया कहानी। मजा आ गया । बधाई