Wednesday, December 17, 2008

तन्हाई

तन्हाई / एक प्रेमी का

तन्हाई में
रात-रात भर
करवटें बदलता रहा
आंसू से तकिया
भिंगोता रहा
बात कुछ नहीं थी
बेबात मासूका
रूठ गई
छान पगहा तुड़ाकर
चली गई
फोन करता हूं
रिंग होता रहा
फोन उठाती नहीं
बेबस हूं / लाचार हूं
कुछ सुहाता नहीं
कुछ भाता नहीं
आज कोर्ट की नोटिस मिली
पढ़ते ही गस खा गया
यह क्या हो गया
तलाक की नोटिस है
शेष जिन्दगी का
क्या होगा?
कहां जाऊं
क्या डूब मरूं!
समाज क्या कहेगा
कैसा नामर्द था
डूब मरा।

तन्हाई / एक प्रेमिका की

आंखें बंद
दीखता है
कुछ साफ
वैसा कुछ हो गया
बेमिसाल
संभावना के परे
हैरत में हूं
बखान ब्यौरा
सुनाकर क्या होगा
जग हंसाई होगी
पहाड़-सी जिन्दगी
तन्हाई में
अब कैसे कटेगी?

तन्हाई / एक बूढ़े की

वृद्धाश्रम
8 x 8 का कमरा
शेष जिन्दगी यहीं कटेगी
आनन्द है
भाई-बंद हैं
मिलना-जुलना होता रहता है
मुस्कान लिए सलाम-बंदगी होती है
आदान-प्रदान कुशल क्षेम का होता है
पर आधी रात को
नींद टूट जाती है
साफ दीखता है
पहले पत्नी गई
बड़ा बेटा प्लेन क्रैश में गया
दूसरा कैंसर से चला गया
उसके इलाज में
घर गया
तीसरे का संरक्षण था
वह बीबी-बच्चों के साथ
अमरीका चला गया
पांच वर्षों के लिए
खेवा खर्च मेरे लिए
आश्रम में जमा कर गया
भार मुक्त हो गया
गंगा नहा गया / हाथ झाड़ गया
टूट चुका हूं
तन्हाई में जीता हूं
मौत हाथ में नहीं
आबाद रहे यह आश्रम
मेरा नया घर।


समरस कविता संग्रह से उद्धृत

1 comment:

Vinay said...

बढ़या है!