Saturday, December 13, 2008

ये बच्चे

ये बच्चे
भावी पीढ़ी की
अमानत हैं
धरोहर हैं
देश की
पढ़ते हैं
कहां
जहां
कुछ घंटों की
प्रात: कालीन
उनकी शाला है
सच कहें तो
चरवाहाशाला है
वहां पढऩे आते हैं
बच्चे खाली पेट
शाला से छूटते ही
घर में रूखा-सूखा
कुछ खा कर
जुट जाते हैं
चरवाही में
गोबर बटोरने में
बकरियां चराने में
भाई बहनों को
संभालने में
उनका बाकी समय
ऐसे ही गुजर जाता है

समरस कविता संग्रह से उद्धृत

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