Wednesday, November 18, 2009

इधर

यहां तक
पहुंचते गये
अब क्‍या चाहते हो
दुनिया मुट्ठी में
करने की ख्‍वाहिश
तुम्‍हारी जाती नहीं
X X X

तुम्‍हारे डग
नहीं उठते
सीढ़ियां नहीं चढ़ पाते
सहारा ढूंढ़ते हो
एक अदद कोई
पोता, पोती, बहू
बेटा, बेटी की, मिल जाती है
निहाल हो जाते हो

Monday, November 9, 2009

31 अगस्‍त, 08

वह घड़ी - वह दृश्‍य
घर का बिलखना - क्‍या हो रहा है!
पहले बाबा का बेटा,
फिर बड़ी बहू,
अम्‍मां तुम भी,
क्‍यों जा रही हो?
पूजा घर में दीया
कौन जलाएगा!
फिर बाबा तुम भी,
तुम्‍हारे बिना मेरा
क्‍या होगा?
पास में खड़ा,
आम ने कहा
घबराओ मत
मैं हूं न
दोनों संग-संग
रहेंगे।

Tuesday, November 3, 2009

प्रधानमंत्री के प्रति

प्रधानमंत्री के प्रति

ओपन हर्ट सर्जरी पर
धन्‍यवाद किसे दूं!
पहला धन्‍यवाद भगवान को दूं
दूसरा धन्‍यवाद डॉक्‍टरों की टीम को
तेरह घंटों में सफल
सर्जरी पर
तीसरा धन्‍यवाद एम्‍स को
चौथा धन्‍यवाद प्रधानमंत्री, मनमोहन सिंह को
पांचवां धन्‍यवाद उनके परिवार जनों को
छठा धन्‍यवाद भारत को
सातवां धन्‍यवाद सारे लोगों को
जिनकी निगाहें
उन पर टिकी थीं।

Thursday, April 16, 2009

गरमी

उधर अस्त होता सूरज
क्षितिज में गोटा लगता
इधर पेड़-पौधे
निस्पंद मौन
एक पत्ता भी नहीं हिलता
* *
जेठ की पूर्णिमा
पूरब की दिशा में चाँद
क्षितिज से उठता
अपने मौज में।
* *
कैसी उमस
जान लेवा गरमी
बदन पसीना से तरबतर
भीगी गंजी निचोड़ा
* *
सिर फट रहा है
बिजली गुल
जायें तो जाएँ कहाँ
नहाने का मन हुआ
नहाया जी भर
लेकिन थोड़ी ही देर में
फिर वही गरमी
वही उमस
बिजली का खस्ताहाल!
परेशां मन कहीं नहीं चैन!

Tuesday, April 14, 2009

चेहरा

बाल सफ़ेद

मुंह में दांत नहीं

गाल पिचका -पिचका

आँखें कोटर में

धंसी-धंसी

झुर्रियां काया की

अजीबोगरीब-सी

डील-डौल

कद-काठी

बतलाती है

कभी इमारत

बुलंद थी

* * *

अतीत का पन्ना पलटो

यह वही चेहरा है

घुंघराले बाल

चंचल आँखें

छलकता प्यार

वाणी में मिश्री का घोल

गदरायी काया उन्नत उरोज

चाल गजगामिनी

सदाबहार

उसे देखते रहने का मन करता था

तो आज उस चेहरे के अतीत में झांको

सब्र-संतोष करो

चेहरा बदलता है आदमी का

दिल नहीं बदलता

Monday, April 13, 2009

लोग

नाम,ख्याति,शोहरतवाले
परवान चढ़ते रहते हैं
उन्हें परेशान करते हैं वे
जिसने स्वयं तो
कुछ नहीं किया
बर्बाद किया अपने को
जलते रहे,मरते रहे
भुनते रहे

उनसे तो बेहतर हैं वे
जो कुछ करना चाहते हैं
समाज के लिए
जिनके दिल में दर्द है
जिनका दृष्टिकोण व्यापक है
उदार हैं
वे मर मिटना चाहते हैं
उन निस्सहाय
पिछड़े के लिए
जिनकी कोई अहमियत नहीं होती।

Monday, March 30, 2009

नया विहान

आगे पीछे
जाना है
सब को
क्या करेंगे ?
धराधाम पर
जब तक हैं
लुटाते चलें
स्नेह, प्रेम
सद्भावना
निःस्वार्थ सेवा
करते रहें
बिना मुंह वालों को
बोलना सिखावें
चलना सिखावें
कर्मठ बनावें
मुंहताज बनकर
वे न जियें
धोखा न खायें
जैसा होता रहा है।
आगे दोहन न हो।
बहुत हुआ।
इंतजार करें
स्वर्णिम विहान का
देहरी पर।

Friday, March 20, 2009

मुंबई के काले कबूतर

आकाश से बातें करती चैदह माला की धीरज रेसीडेंसी चार खंडों में फैली है। हर लोर पर चार लैट हैं। हर माला पर खिड़िकियां हैं] छज्जे हैं। सामने का वेनस दस माला में सिमटा है। दोनों पर काले कबूतरों का बसेरा अजीबोगरीब-सा लगता है। साफ होते ही आसपास की खिड़कियों पर बैठे कबूतरों की इन हरकतों पर शायद ही कोई तवज्जो देता हो! आमन-सामने की खिड़कियों पर कबूतरों का आना-जाना] लड़ना-झगड़ना चालू हो जाता है। फिर हर दिन सांझ होते ही ये कबूतर जहां-तहां] जैसे-तैसे हर माला की खिड़कियों] छज्जों पर पनाह ले लेते हैं। रात में इनकी हरकतें नहीं होतीं। इन पर कोई अटैक भी नहीं होता। खिड़कियों पर रखे हुए ए. सी. की अग-बगल इनके पलते छोटे बच्चों को आसानी से पकड़ा जा सकता है। किन्तु ऐसा यहां पसंद नहीं है। अतः उड़न्तू होते ही उन बच्चों के मां-बाप उसे भगा दिया करते हैं। इसका चश्मदीद गवाह मैं खुद हूं। जिस कमरे में रहता हूं। वहां दो जोड़ी कबूतरों को उड़ते देखा है।

ये कबूतर दाना-पानी के लिए यहां नहीं उतरते। यहां ये रह तो लेते हैं] ठीक वैसे ही जैसे फुटपाथ पर गुजर करने वाले सर्वहारा वर्ग। समूह में ये दाना-पानी के लिए चले जाते हैं जिसका इन्हें पता होता है। सुना है] मुंबई में कहीं-कहीं इन कबूतरों के लिए] आगार बनाये गए हैं। खुले स्थलों पर ऐसे लोग भी हैं जो पर्याप्त मात्रा में दाना छिड़क कर आगे बढ़ जाते हैं। इण्डिया गेट के पास] ताज के सामने काले कबूतर ऐसे दीख पड़ते हैं] जैसे काली चादर बिछी हुई है।

वेनस और धीरज के बीच खुला आकाश है। उसी के बीच समूह में वे तब भागते हैं जब यदा-कदा चिल्ह आकर मंडराने लगता है। चिल्ह शिकार की तलाश में आता है] उनके पीछे-पीछे कौअे भी आ जाते हैं] उन अंडों और छोटे बच्चों को अपने लोल में लेकर भागते हैं। वहीं चिल्ह उन छोटे बच्चों और ठिकानों पर चोट करता है और शिकार को चंगुल में लेकर भाग जाता है।

काले कौअे समूह में सुबह-सुबह खिड़कियों पर चोट करते हैं। कबूतरों के साथ जंग छिड़ जाता है। कबूतर घोघ फुलाकर नाचते हैं और अपनी आवाज में कहते हैं भागो भागो। कौअे भाग जाते हैं। किन्तु जब इकट्ठे निकलते हैं कबूतर] तो अंडा या बिलकुल छोटा बच्चा इनका लेकर कौअे भाग जाते हैं। गनीमत है, इन कबूतरों को बर्ड लू नहीं होता] वैसा होता तो लैटों में रहनेवालों का हश्र क्या होता\ मुंबई के गगनचुम्बी अट्टालिकाओं को देखें। काले कबूतर मिल जायेंगे। इन कंक्रीट के जंगलों में ही तो काले कबूतरों का बसेरा है।

Friday, February 27, 2009

चंदा मामा

आज नहीं
मुद्दत से
तुम चंदा मामा हो
हम तुम्हारे
भांजा हैं
मां तुम्हें - बुलाती थी
चंदामामा आरे आव s
बारे आव s
सोना के कटोरी में
दूध-भात
लेले आव s
आ जाते थे
दौड़े
दूध भात
खिला कर
चले जाते थे
तुम से
मिलने के लिए
मन मचल रहा था
चंद्रयान से
संदेशा भेजा था
तुमको मिल गया न!

X X X

धरती पर तिल
धरने की जगह नहीं
सब बडक़ा लोगों ने
हड़प लिया
झोपड़पट्टी वालों के लिए
फुटपाथ पर दिन
गुजारने वालों के लिए
जगह की एडवांस
बुकिंग कर दो
तुम रहम दिल हो
दीन-दुखियों के
रहबर हो।

Monday, February 23, 2009

मेरा मन अब भी

जिन्दगी एक धरोहर है
अमूल्य निधि है
इस पर अधिकार
क्या सिर्फ मेरा ही है।
जैसे मैं चाहूं
वैसे मनमानापन
इसके साथ करता रहूं।
लगता है
सब कुछ कल की बात है
जिन्दगी का चतुर्थांश
तो मां-बाप के साया में
पला बढ़ा
आदमी बनाने का श्रेय उन्हीं का था।
उनके लिए
हमने क्या किया!
प्रतिदान को उन ने
चाहा नहीं
इस लंबी जिन्दगी में
बहुतों से संग-छुट गया
कुछ रूठ गए
कुछ भगवान के प्यारे हो गए
आज अकेले खड़ा हूं
मंजिल दिखाई देती है
चौथेपन की जिन्दगी का
क्या भरोसा!
कब चली जाए
क्या अभी मुझे
सपना देखना चाहिए
कि
यह कर लूं! वह भी कर लूं!
चाहत की कोई सीमा नहीं होती।

Friday, February 20, 2009

कॉलगर्ल

कॉल गर्ल
इनके-उनके घर की
बेटियां ही होती हैं
उनमें मौज-मस्ती से जीने की
एक हविस होती है
मां-बाप की / मजबूरी होती है
घर चलाने के लिए
बेटी को विवश करते हैं
प्रोत्साहित करते हैं
कॉल गर्ल बनने को।
महानगर में
यह कारोबार चलता है
बड़े-बड़े होटलों से
जुड़ी होती हैं
इंतजार करती होती है
कॉल की
कॉल आते ही
बुक होते ही
निकल पड़ती हैं
गंतव्य को
रात-रात भर के लिए
पौ फटते ही
लौटती होती हैं
अपने-अपने घरों के लिए
घर आते ही
अपने कमरे में
पसर जाती हैं
दस बजे दिन तक
एक कप चाय के साथ
मां जगाती है
उठ बेटी, उठ।

Tuesday, February 17, 2009

चुंबन

दो के बीच चुंबन का आदान प्रदान होता है। दोनों का सेक्स एक भी हो सकता है। दोनों का दो सेक्स भी हो सकता है। माता-पिता और शिशु के बीच चुंबन का आदान प्रदान होता रहता है। उसके लिए काल-घड़ी नहीं होती। शिशु जब सजग हो जाता है। वह घर के लोगों को पहचानने लगता है, तो खुलकर 'पूची' लेता भी है। देता भी है। शिशु का चुम्मा लेने पर जो आनन्दानुभूति होती है। वह असीमित होती है।

यह तो पारिवारिक रिश्तों के बीच के चुंबन की बात हुई। अब जरा हटकर युगल जोड़ी के बीच चुंबन की बात करें। हमारी संस्कृति में खुलेआम दम्पति के बीच चुंबन का आदान प्रदान वर्जित है। नव दम्पति के बीच मदहोशी का आलम रहता है। उसका अपना कमरा होता है। सद्य विवाहित पति जब घर से निकलने लगता है तो वह परिणीता को आगोश में ले लेता है और एक छोटा-सा चुंबन ले लेता है फिर जब वह नवदम्पति सहबिस्तर होता है और रति क्रिया शुरू होती है, उस समय कैसा-कैसा क्या होता है, कितनी देर टिकता है सब अलग-अलग किस्म का होता होगा। इसमें जवानी से लेकर बुढ़ापे तक की जोड़ी की अपनी-अपनी कारगुजारियां अलग-अलग किस्म की होती है। अपनी-अपनी स्मृतियों में आज तक कैद होंगी। इस चुंबन प्रक्रिया पर कुछ लिख रहा हूं चूंकि अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध नहीं है। हम एक-दूसरों की संवेदना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का लाभ उठावें। आपका हमारा मन बहलाव का ब्लॉग और नेट से बढक़र दूसरा कोई विकल्प नहीं हो सकता। बंधुओं इस पर तो थीसिस लिखा जा सकता है।

Monday, February 16, 2009

पैसा

क्रय - बिक्रय का जरिया
पैसा
कदम कदम पर / चाहिये पैसा
पैसा है श्रम
मान मर्यादा की रक्षा
करता है पैसा
पैसा हिम्मत है
पैसा संबल है
पैसा मनोबल है
पैसा जानलेवा है

साधु-संत
राजा-रंक
चाहिए सबको पैसा
नींद हराम कर देता है
पैसा
जो भी हो / पैसा तो चाहिए
काम नहीं चलता है
पैसा के बिना - किसी का भी

Saturday, February 14, 2009

तनाव

आजकल तनाव मुक्त कोई नहीं है। चाहे वह पढऩेवाला विद्यार्थी हो। काम करने वाले लोग हों। टैक्सी ड्राइवर हो या घर की गृहिणी हों। तनाव का कोई खास नुस्खा नहीं दिया जा सकता।

पर परिवार के बीच आपसी प्यार, सम्मान, आदर भाव बना हुआ है तो तनाव से बचा जा सकता है। बच्चे जब स्कूल जा रहे हों, तो उन्हें प्यार से स्कूल के लिए विदा करें। उसके स्कूल से लौटने के समय औवल उसके दादा-दादी इंतजार में खड़े रहें तो उसे ज्यादा खुशी मिलती है। उसका बस्ता आप ले लें। वह उछलता-कूदता घर आवे। फिर यदि आप दोनों ही कार्यरत हैं, तो यह ध्यान रखें। आप दोनों में जो कोई पहले घर आवे किचन का रोजमर्रा का काम कुछ हल्का बनाकर रखें। मसलन सब्जी काटकर रखें। दाल चढ़ा दें।

यदि आपके साथ माता-पिता हैं, तो उनके साथ प्रेम और आदर का भाव रखें। संभव हो तो उनके पास बैठें। उनका पांव दबा दिया करें। वे निहाल हो जायेंगे। उनका रोम-रोम पुलकित हो उठेगा और उनका आशीष आपके जीवन को तनाव मुक्त बना देगा। सोने के समय उनकी मच्छरदानी लगा दिया करें। यदि थूक खंखार फेंकने की उनकी आदत बनी हुई है, तो पिकदानी उनके पास रख दिया करें।

दिन में इकट्ठे भोजन करने का अवसर नहीं मिल सकता है। पर रात में इकट्ठा बैठकर भोजन करें। भोजन आपके आगे जो आये, उसे प्रसाद मानकर भोजन करें। कुछ खास आइटम की प्रशंसा कर दें। पकानेवाले को खुशी होगी।

इन दिनों बच्चा, बूढ़ा, जवान सभी अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग हो गए हैं। स्वस्थ रहने के लिए योगा, ध्यान, शिथिलासन और शवासन करें। यदि आपको ब्लड प्रेशर है, कहीं वाद-विवाद में नहीं फंसे। ये कुछ मामूल बातें हैं जिनसे आप तनाव मुक्त रह सकते हैं।

Thursday, February 12, 2009

पहचान

गांव समाज में
हमारी आपकी पहचान
आसानी से हो जाती है
देश विदेश में
जन-सामान्य को
पहचाना कैसे जाय
तो आई डी चाहिये
वोटर पहचान पत्र
राशन कार्ड
लाइसेंस कार्ड
क्रेडिट कार्ड
ए टी एम कार्ड
ऐसा ही कुछ चाहिये
सार्वजनिक स्थलों पर
अधिकारी तो
नाम के बिल्ले
से जाने जाते हैं
पर भीतरी पहचान
असली पहचान है
मसलन रहम दिल होना
दरियादिल होना
खूंखार होना

Saturday, February 7, 2009

आपदायें

आपदायें
बिना बुलाये आती हैं
कहर बरपाती हैं
कभी यहां - कभी वहां
कभी
सुनामी लहरें बनकर
निशाना साधती हैं
बेगुनाहों पर
बेरहम होकर
ओले बरसाती हैं
हिमखण्ड गिराती हैं
मार्ग अवरूद्ध हो जाता है
बिजली चली जाती है
अंधेरा फैल जाता है
सरकार विवश हो जाती है
विपक्ष चिल्लाता है
भले हम आप
कोसते रहें
पर है यह
प्रकृति के साथ
छेड़छाड़ का परिणाम
जीना है
तो पर्यावरण की रक्षा करें।

Wednesday, February 4, 2009

प्यार

जहां प्यार है
वहां दर्द है
प्रेम रूला देता है
जुदाई का भय
खोने का डर
बना रहता है

X X X

प्यार दुखद
तब होता है
जब प्रेमी या प्रेमिका
बेवफा हो जाते हैं
विश्वासघात का घाव
जल्दी नहीं भरता
प्यार में एक जादू है
नि:स्वार्थ प्रेम
पवित्र होता है

Monday, February 2, 2009

औरत

जननी है
ममता है
वसुंधरा है
माया है
भोग्या है
जंजाल है
जगज्जननी है
मोहिनी है
काली है / दुर्गा है
लक्ष्मी है / पिशाचिनी है
वह रंग बदलती रहती है
क्या नहीं है!
वह रहस्यमयी है
वह सृष्टि है
दुनिया चलाती है

Friday, January 30, 2009

चुनौतियां

कैसा है
वह बूढ़ा
पेट-पीठ
जिसका समान
बोली में दहाड़
दम-खम
बार-बार
उसे
वयोवृद्ध कहकर
कहने वाले
क्या समझते हैं!
वे
जवान ही रहेंगे
आवें
हाथ मिलावें
चुनौतियां
स्वीकार है।

Tuesday, January 27, 2009

अवमूल्यन

बचपन में
तांबे का ढेबुआ देखा
अधेला देखा
आधा आना, एक आना
चवन्नी, अठन्नी
एक रुपये का सिक्का देखा
वे अब चलन में नहीं हैं
क्यों?
ये सारे गुलामी के दौर के सिक्के थे
हम आजाद हैं
प्रजातंत्र में जीते-मरते हैं
इसका बचपन गया
जवानी आई-गई
दशमलव के सिक्के आये
आलमुनियम के दो, पांच, दस
बीस, पचीस, पचास के सिक्के
अवमूल्यन नहीं झेल पाये
पचीस, पचास का सिक्का
चल रहा था
वे भी चले गये
बड़े वेग से मनी वैल्यू
घटती गयी
रुपया वैल्यू डॉलर/पौंड से
आंकी जाने लगी
फिर मानव-मूल्य क्या रहा
हमारा-आपका रुतबा कहां गया
गली-कूची, राह चलते
जो दर्जा सम्मान मिला था
चला गया
क्यों गया!
हम भोथड़े हो गए
कुंद हो गए
आदमी के अंदर की करुणा
दया आदमियत
खतम हो गई
आज वैसी जिन्दगी के तराने
गाने में मशगूल हैं
थोड़ा रूक कर
सोचिए आप कहां हैं?
आपको कैसे तौला जाए
आपका मूल्य कैसे बढ़ेगा?
कद कैसे उठेगा?

Friday, January 23, 2009

दलाली

दलाली / एक धंधा है
कल्प वृक्ष है
दलाल सौदा पटाता है
दो को जोड़ता है
दोनों का खाता है
आराम से जीता है
उसका चरित्र
जैसा भी हो / क्या लेना-देना
काम से काम है / काम हुआ
दोस्ती टूटी
आप अपने घर / वह अपने घर
दलाली का धंधा
सर्वहारा का नहीं
इसमें श्रम नहीं लगता
बुद्धि कौशल का काम है
चतुराई का खेल है
दलाल की औकात होती है
वह कार मेनटेन करता है
मोबाइल रखता है
थ्री-एक्स पीता है / पिलाता है
जैसी पार्टी
वैसी खातिरदारी
जरूरत पडऩे पर
कालगर्ल भी पेश करता है
यह एक फलता-फूलता
धंधा है
इसकी दुनिया ही अलग है

Thursday, January 22, 2009

ओबामा

सर्वविदित है
पूर्व क्षितिज पर
सूरज निकलता है
एक सूरज
पश्चिम के क्षितिज पर
निकला है
बराक ओबामा
बन्धुओ उसे नमन करो
ओबामा की शक्तियों को पहचानो
चमत्कृत होने का गुर तो सीखें

Wednesday, January 21, 2009

मौत

मौत है क्या?
कभी गौर किया है
किसी ने कोई फतबा दिया है
कि मौत क्या है?
मौत से कोई डरता भी है
मौत कोई भूत तो नहीं
कोई चुड़ैल तो नहीं
मौत का पैगाम कहां से आता है
क्या आप उस पैगाम की प्रतीक्षा में हैं
मौत को क्या आप पछाड़ सकते हैं
मौत के साथ कोई खेलता भी है
सारी बेचैनी, सारी परेशानी का
एक ही रामवाण है
वह है मौत
कलह, विग्रह, फिंचाई, खिंचाई
प्रशंसा, निन्दा, सब का अन्त
कब होगा?
जब झटके में मौत आएगी
अपने आगोश में लेकर
चली जाएगी
राम नाम सत्य होता रहेगा।

Tuesday, January 20, 2009

मोह-माया-ममता

मोह-माया-ममता में
ठन गया
कौन बड़ा है
उधर से नारद जी
वीणा बजाते आये
पूछा, 'क्या बात है?Ó
तीनों ने कहा
'फरिया दीजिये
नारद जी।Ó
नारदजी पसोपेश में पड़ गये
तुम तीनों तो
सहोदर भाई-बहन हो
सिरजनहार की औलाद हो
वजूद-कद
तुम तीनों के समान हैं
एक-दूसरे से प्रतिबद्ध हो
निराकार हो
सृष्टि के नियामक हो
कौन बचा है
तुम तीनों से
आदमी को कौन कहे
जीव-जन्तु में विराजमान हो
सृष्टि को थामे हो
तुम तीनों के रूतबे
बरकरार हैं।

Monday, January 19, 2009

नोंक-झोंक

उनके बीच
बड़ा ढंग का
चलता था
न कोई तनाव
न कोई शिकायत
पर अब
यह क्या हो गया
क्यों बार-बार
वाक्-युद्ध
खिच-खिच
नोंक-झोंक
आए दिन
हो जाता है

X X X

उनकी शिकायत है
आप मुझे
बच्चों के बीच
क्यों झिरकते हैं
मुझे बुरा लगता है
इस घर में
मेरा क्या कोई वजूद नहीं
कोई क्या
विशेष अधिकार है
मैं चुप नहीं रह सकती।

Saturday, January 17, 2009

पर्दाफाश

पर्दाफाश किसका करूं ?
अपना
आपका
राजनेता का
दलितों का
सवर्णों का
नंगा तो
चौक-चौराहे पर
टीवी चैनलों पर
हम आप
होते ही हैं
आंखों में पानी
बचा कहां है!
सामाजिक संरचना
मतलबी हो गयी
सही बात
सत्य बात
गंवारा नहीं होती
एक की क्षमता के आगे
विश्व नतमस्तक होकर
रह गया
कुछ कर न सका
बिगाड़ न सका
आज वह जो चाहेगा
वही करेगा
सबकी बोलती बंद।

Friday, January 16, 2009

दर्द

जी! दर्द है
मीठा-मीठा
नहीं है
जानलेवा है
परेशान हूं
हैरान हूं
चिल्लाता हूं
संभालो
टीस रहा है
अंगर रहा है
फटता जा रहा है
बुझाता नहीं है
दर्द कहां है
यहां दाबो
इसे दाबो
नहीं-नहीं
इसे दाबो
त्राण कैसे मिलेगा
दवा राहत देती है
दवा बेअसर है
क्या करूं?
लोग सलाह दे जाते हैं
आराम कीजिए
दर्द बढऩे पर
बीवी को बुलाता हूं
कहता हूं
दर्द बांट लो
बीवी कहती है
दर्द बांटा नहीं जाता / झेला जाता है।

Thursday, January 15, 2009

पान 2

पानी की खासियत को
मैं क्या बखानूं
अलग-अलग कोण से
देखा जाता है
जिन दिनों वह / मेरी सहचरी थी
पानी की गिलौरी / मुंह में दाबे रहता था
तब की बात है / अहमद हुसैन जर्दा
मुंह लग गया था / वही फांकता था
कभी-कभी पान लगता भी था
घर में कुहराम मच जाता था
बीबी माथा पीटने लगती थी
खुमारी उतरते ही फिर उसी पान की
ख्वाहिश
जनाब
ताल ठोक कर कहता हूं
आप शपथ लेकर भी
पान छोड़ नहीं सकते
किन्तु अभी जरा चेतिये
पान के ऊपर जो
फरमाते हैं
वह जानलेवा है
आपको ले डूबेगा
बाल-बच्चा बीबी के लिए
पान के साथ
जहर नहीं फांकें

X X X

पान आज
मेरे साथ नहीं है
गोष्ठियों में
पान चबाते देखता हूं
अपने बीते दिनों को
याद करता हूं
सुना है, पान तो
स्वर्ग में भी नहीं मिलता है
तो क्या पान शुरू करूं?

Wednesday, January 14, 2009

पान 1

मुद्दत हुआ
पान छूट गया
कह नहीं सकता उसने मुझे छोड़ा
किन्तु जिन दिनों संगिनी जैसी थी
वही जगाती थी / वही सुलाती थी
मुंह कभी / खाली नहीं रहता था

X X X

पान लाचार / बना देता है
गुलाम बना देता है
कभी एहसास नहीं होता
कि पान ने गुलाम बना लिया
पान का बीड़ा
किसने लगाया
इससे भी उसका महत्व
बढ़ जाता है
पान प्रेयसी के हाथ का
पान तवायफ के हाथ का
पान प्रेमिका के हाथ का
एक अनजाने के हाथ का
एक परिचित पनहेरी के हाथ का
सबका मजा अलग-अलग होता है

X X X

पान के शागिर्द
चूना-कत्था नहीं
तो अकेले पान क्या रंग दिखा पाता
पान की गिलौरी
जो एक पैसा में मिलती थी
बारे आम अब एक टका की हो गयी है
कीमती गिलोरियां खाने वाले शौकीन
बिरले होते हैं
वह सर्वसुलभ नहीं है
किसी को मीठा पान भाता है
ज्यादा लोग पान के ऊपर
काला, पीला जाने क्या-क्या
मांगते हैं
पान की डंटी में चूना चाहिए
पनहेरी तबाह रहता है।

क्रमश:

Tuesday, January 13, 2009

इंतजार

मुद्दत से
साइकिल चला रहा हूं
घर-आंगन, राह-डगर
चल नहीं पाता
कष्ट होता है
तो
छड़ी का सहारा
लेना पड़ता है
किन्तु
साइकिल पर
जब बैठ जाता हूं
मनोबल बढ़ जाता है
सावधानी से उतरता हूं
पर कब तक
अभी अठासी चल रहा है
काया से जर्जर
झंखाड़
यह छ: फुट का आदमी
साइकिल चलाता रहेगा
तब तक / जब तक
एक दिन अंत नहीं होगा
इंतजार कीजिए
अभी आप के साथ
चल तो रहा हूं।

Monday, January 12, 2009

वजूद

शबनम
तुम घर की बेटी हो
पराये घर
चली जाओगी
आये दिन तुम टांग
क्यों अराती हो
इस घर में
तुम्हारा कोई
वजूद नहीं बनता
"पापा! ऐसा क्यों?
बेटी का कोई वजूद
पिता के घर में
नहीं होता क्या?"
मम्मी ने कहा
हां शबनम
पापा ठीक कहते हैं
तुम्हारी शेखी
फबती नहीं
राहुल का अधिकार बनता है
जिसका अधिकार बनता है
वह कुछ नहीं बोलता
टांग नहीं अड़ाता है।

Saturday, January 10, 2009

घर

चिडिय़ा
घोंसला बनाती है
आदमी
घर बनाता है
उद्देश्य
दोनों के समान
चिडिय़ा शाम होते ही
अपने घोंसलों में
घुस जाती हैं
आदमी के घर
लौटने का ठिकाना नहीं
पर
वह भी
जब घर लौटता है
बंद दरवाजे पर दस्तक देता है
स्विच दाबता है घंटी बजती है
प्रतीक्षा में जगी पड़ी बीवी
दरवाजा खोलती है तो
दोनों के मिलन का वह क्षण
कितना सुखद होता है
ऐसा प्राय: सबको
नसीब में मिला होता है
किन्तु जिस घर में
घुसते ही झिड़कियां मिलती हों
कैफियत तलब हो जाए
दरवाजे पर ही उस मर्द को
वह घर कैसा लगता होगा
घर काटता भी है
नसीब अपना-अपना होता है।

Thursday, January 8, 2009

छड़ी

छड़ी
संबल है
साथी है
भाई है
सहारा है
हाथ में रहने पर
भौंकते कुत्ते को
भगाती है
सांप मार सकती है
प्रहार होने पर
रक्षा करती है
प्रहार करने पर
मददगार होती है
बुढ़ापे का संबल है
बूढ़े का दोस्त है

Tuesday, January 6, 2009

नफरत

आदमी को आदमी से नफरत क्यों?
वह कौन था
जो जिन्दा जलाया गया
जिसने जलाया उसे क्या कहूं?
जल्लाद-राक्षस-निर्मम
उस आदमी का कसूर क्या था
यदि वह कसूरवार था
तो उसे कानून के हवाले
क्यों नहीं किया गया?

X X X

आदमी में नफरत कौन फैलाता है
नफरत की तालीम कहां मिलती है
क्या हम बर्बरता की ओर जा रहे हैं

X X X

अंत क्या होगा
हश्र क्या होगा
क्या हम कट मर जायेंगे
धर्म के नाम पर
धर्म ऐसा करने को नहीं कहता
नफरत का बीज किसने फैलाया
जहर क्यों बोया गया
जब बोया गया
तो काटना ही होगा

Saturday, January 3, 2009

जटायु

कभी गौर किया है
आकाश सूना- सूना
क्यों दिखता है
जटायु प्रजाति का
विलोप तो नहीं हो गया
गिद्ध
न नीचे, न ऊपर
न पेड़ों पर
कहीं नहीं दिखता
अंजाम क्या होगा!
उस दिन
घर लौट रहा था
सड़क किनारे
बूढ़ा बैल का रक्तिम

ढ़ांचा पड़ा था
दुर्गन्ध फैल रहा था
नाक पर रूमाल रख
जल्दी से आगे
बढ़ गया
इक्का- दुक्का कुत्ता
कौआ चोंच
मार रहा था
इक्कीसवीं सदी की यह त्रासदी
भविष्य में
क्या?
इन जानवरों के लिए
कब्रगाह बनवाना होगा?

Friday, January 2, 2009

आम आदमी

आम आदमी / भगवान भरोसे जीता है
उसे शिकवा-शिकायत / किसी से नहीं होती
वन निर्द्वन्द्व विचरण करता है
जहां तबीयत होती है
रोजी-रोटी की तलाश में
निकल जाता है / सीधा-सपाटा
सपाट जिन्दगी / उसकी होती है
देवी-देवता, मंदिर के आगे / सिर झुका लेता है
राम मड़ैया में / जिन्दगी काट लेता है
अब कुछ-कुछ / बूझने लगा है

उसके फिनानसर / मुखिया-महाजन
बन जाते हैं
दस रुपये सैकड़े / माहवारी ब्याज पर
कर्ज लेकर / दूर-दराज
कमाने निकल जाता है

आम आदमी आज बेचैन नहीं है
चैन की जिन्दगी / बेहतर जिन्दगी
तनाव रहित जिन्दगी / उन्हें नसीब है
कभी पानी पीकर भी सो जाता है
बुरे दिनों के लिए
कुछ बचा नहीं पाता है
नीचे धामी / ऊपर भगवान
भरोसे जीता है / वह समझता है
खास आदमी की / दुनिया अलग होती है।

Thursday, January 1, 2009

जीवन-मृत्यु

जीवन-मृत्यु
दोनों शाश्वत
मांगने से नहीं मिलते
कुछ हद तक
एक वश में
दूसरा औचक
एक आता है
एलानिया
दूसरी (मौत)
ले जाती है
चुपचाप
झटके में
मौत
कोई चाहता है!
कोई नहीं चाहता
जिन्दा रहकर
हम करते क्या हैं
कर्म, कुकर्म, सुकर्म
किसके लिये
अपनों के लिये
बाल-बच्चों के लिये