आदमी
वक्त का
गुलाम है
वक्त
ठहरता नहीं
वक्त के साथ
चलना पड़ता है
वक्त
बेरहम होता है
वक्त ने साथ दिया
तो इंसान
कहां से कहां
चला जाता है
वक्त ने साथ
नहीं दिया
तो धूल चटा देता है
वक्त की पहचान
मुश्किल है
जिसने पहचाना
पौ-बारह है
जिसने कोताही की
गया काम से
सब नहीं / कोई-कोई
वक्त को / मुट्ठी में
किये रहता है
उसके आगे-पीछे
लोग लगे रहते हैं
सिर आंखों पर
उठाये रहते हैं।
समरस कविता संग्रह से उद्धृत
Thursday, December 11, 2008
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