Sunday, October 12, 2008

कोसी की बाढ़:छठा दिन

छठा दिन
एलार्म के पूर्व नींद टूट गई। जगा पड़ा रहा। एलार्म बजने पर उठा। शौच से निवृत, ध्यान के पूर्व देव दर्शन प्रार्थना। ध्यान जमता नहीं। आधा घंटा बी बी सी सुनने के साथ व्यायाम। आगे न्यूज सुना प्रादेशिक। स्नान-पूजा,दीवान (जाप)पर शंख बजाया पूजा घर में। सत्तू का जलपान। सवेरे पानी निकल गया। दोपहर बाद बढ़ता दीखा। सायकिल बेंच पर रखने को कहा, नहीं रखा गया। आज अशोक बोल रहे थे, सब कुछ अलग काम बाबूजी ने किया। कोई जवाब नहीं दिया। वाइफ भी बोलती हैं। सारा ठिकरा मेरे सिर फोड़ा जा रहा है। 1985 की डायरी की मुख्य बातें नोट किया।
फिर पानी का बढऩा। भय-दहशत बरकरार। मेरी एक बात सुनी नहीं जाती।
शाम को घंटा भर सिर्फ गायत्री जाप माला किया - अपराह्न की बेला 2:30 का न्यूज नहीं लगा।
शाम को बी बी सी लगा। राजनीतिक घटनाचक्र का सारांश अच्छा। काफी जानकारियां रहती हैं।

Saturday, October 11, 2008

कोसी की बाढ़:पांचवां दिन

पांचवां दिन
ओम नम: शिवाय की ध्वनि पांच बार। उसके पहले ही उठ बैठा। पूजा घर जाकर प्रणाम किया। और मुंह धोकर आ गया,किशमिश खाया अपने हिस्से का,फिर राष्ट्रीय प्रसारण घंटा भर सुनता रहा। न्यूज सुनकर बंद किया।
बी बी सी लग गया। उसके साथ कसरत और योगा समाप्त किया, फिर जलपान। स्वाध्याय अखंड ज्योति से,पुरानी डायरियां निकालीं। तोषी को पहुंचाने कलकता गया था। दुल्हिन और पत्नी साथ थीं।
फिर तोषी को मुंबई पहली बार पहुंचाने गया। उस प्रवास की कहानी मझधार में,त्रासदी से ही।
आज दोपहर में देह में धूप लगाने गया। राम जी बाबू अपने परिवार के बेटों के साथ बहस में थे। बेटों का दवाब था, अन्यत्र जाने का। रामजी बाबू का कहना, जीना-मरना यहीं है। वाईफ ने कहा, बी डी ओ इसी रास्ते निकले थे।
सुनील ने घर के उत्तर तरफ देखा। खतरा भांपा। नहाकर चला गया, अपने घर ।
अनिल का कमांडर को लिखा पत्र दिखाया। उसने संदेश से भेजवाई, पर वह उनके पास तक पहुंच नहीं सका। किसी ने कहा, हम खुद आफत में हैं।
समय से चाय और भोजन मिल जाता है। वाइफ का मेरी बात सुनकर तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करती हैं। उनका कहना ठीक है। मुझे चुप रहना चाहिए। मैं भी वैसा ही महसूस करता हूं।
कुछ लोगों को ,राम चन्दर और हीरा का परिवार चला गया। मन में आशंका लिए कि घर जाएगा। मैं शाम को सुंदर वातावरण के लिए गायत्री जाप का सहारा ले रहा हूं। ऊपर वेला मन भयभीत था,पर रात भी चैन से सोया। घर के कमरों का पानी घटता-बढ़ता रहा।

Wednesday, October 8, 2008

कोसी की बाढ़:चौथा दिन

चौथा दिन
एलार्म बजते ही बिस्तर छोड़ा। यों घर का पानी निकलते देख खुशी हुई। पर पानी का वेग पूरब में देख कर, वह भी पोर्टिको से जो पास कर रहा है, उससे भयभीत मेरे मन ने अशोक को आगाह किया, घर गिर सकता है। तो उनका कहना हुआ अशुभ मुंह से क्यों निकालते हैं।
कल जो पत्र बी डी ओ को देना चाहता था,उसे आज सुशील के मार्फत पूर्वाह्न में भिजवाया। पर अभी तक उनके दिलो दिमाग पर कोई असर नहीं हुआ। उन्हें एक पदाधिकारी के नाते त्वरित एक्शन का सुझाव देना चाहिए था। स्थलीय जांच भी कर सकते थे।
रामजी बाबू ने इसकी गंभीरता को समझा तो पोर्टिको की स्थिति, फिर घर के उत्तर की दीवार की नींव की स्थिति को देखते हुए, कुछ ईंटें डाली गईं।
अशोक जी ने पानी खतम होने पर चारों तरफ किनारे-किनारे बोल्डर बिठाने को कहा। मन ही मन में मैंने कहा, कब तक ये वैशाखी पर रहेंगे।
घर बच गया, हम बच गए तो सावधानियां बरती जानी चाहिए। यों नवंबर के पहले जाने की बात पत्नी कर रही है। 30 सितंबर से नवरात्र शुरू हो रहा है। 10 अक्टूबर के बाद जैसी स्थिति रही कुछ दिन पटना में रहकर मुंबई चले जायेंगे।
आज उपरी वेला हेलीकप्टर से कुछ पैकेट जहां-तहां गिराये गए। कुछ को मिला, कुछ को नहीं। चला गया। विन्देश्वरी का परिवार भी चला गया। विन्देश्वरी के दामाद से बातें हुईं।
कुछ लोग छत पर और कुछ लोग नीचे सोये। मैं भी पेशाब करने उठता रहा। नींद आई।