Wednesday, January 11, 2012

लेन देन

लेन-देन की पद्धति सनातन से चली आ रही है। उपकृत होकर खुशी से हम आप इस प्रक्रिया से जुड़े हैं।

आज के संदर्भ में मीडिया ने अन्‍ना हजारे को मीडिया चाहे टीवी हो, चाहे अखबार समूह हो, उनके साथ उनके विभिन्‍न स्‍तर के प्रवक्‍ता हों, अन्‍ना को गांधी का दर्जा बेहिचक दे दिया है।

इसी संदर्भ में एक घटना की बात करना चाहता हूं। विगत दिनों गांव में मेरे दरवाजे पर सालाना जमीन संबंधी रसीद काटने तहसीलदार आये थे। वे अपना सहायक लेकर चलते हैं।

उनके सहायक ने रसीद काट दी। रसीद की रकम कुल जितने भी आये थे। उसमें अपना तहरीर (ऊपरी रकम 500 रु.) जोड़कर बताई थी। मेरे बेटा ने एतराज किया। इस पर उनका तेवर तुरंत बदल गया। उनपर अन्‍ना का कोई असर नहीं पड़ा।

समाज में अभी प्रखंड कार्यालय में लेन-देन चल रहा है। मैंने हस्‍तक्षेप किया। बेटा को कहा 200 रु. दे दें। बेटा ने मान लिया।

Saturday, December 24, 2011

डर

डर का पर्याय निडर ही है। डर है क्‍या? इसका कोई आकार नहीं होता। यह पैदा कैसे होता है! इस पर चिंतन करने की आवश्‍यकता है। डर मन में पैदा होता है। यह निराकार होता है। इसका आकार नहीं होता। इसका विश्‍लेषण आप कर सकते हैं। विशलेषण भी कोई चिंतक ही कर सकता है। डरपोक आदमी दुनिया में कुछ कर नहीं सकता। डर निकम्‍मा बना देता है। जो निर्भीक और निडर होते हैं, वही कुछ कर सकते हैं। फिल्‍मी कलाकार निडर होते हैं। जोखिम भरा काम वैसे ही लोग करते हैं। चन्‍द्रयाण में सफर करना आप से नहीं हो सकता। कौन कर सकता है। वैसे फिल्‍मकार हैं, उसमें इसमें सभी आला दर्जे के हैं। तालेबान वाले में डर नहीं होता। जान हथेली पर लेकर काम करते हैं। यह तालेबान ग्रूप करता है। वह स्‍वयं को उड़ा सकता है।

Thursday, December 22, 2011

डायरी

क्या डायरी लिखना आवश्यक है? मैं कहूंगा, हां सब कोई डायरी नहीं लिखते। अनपढ़ मजदूर, सर्वहारा डायरी क्या लिखेगा! पढ़े लिखे लोग डायरी लिखते हैं। कोई-कोई नियमित डायरी लिखते हैं। लखन बाबू एक साहित्यकार हैं। डायरी लिखते हैं। दो दशक से डायरी लिखते हैं। डायरी लिखने का तौर तरीका यह है कि सत्य-सत्य दिन भर की मुख्य घटनाओं का उसमें उल्लेख रहता है।

अब बूढ़ा हो गए। उनकी लिखने पढ़ने की क्षमता खतम हो गई। उनकी आलमारी पुस्तकों से भर गई हैं। डायरियां भी स्थान लिए आलमारी में पड़ी हैं।

अब कभी सोचते हैं कि इन्हें जला दूं। इसे उनके मरने के बाद इन्हें कौन पढ़ेगा! फिर सोचते हैं। वसीयत करके जायं कि वे मरेंगे तो उन्हें जब जलाया जाय तो इन डायरियों को भी जला दिया जाय। आपकी डायरी क्या है?

Tuesday, December 13, 2011

प्रलय प्रवाह

उधर रूस के जंगलों में लगी आग

थमती नहीं फैलती गई

पाकिस्‍तान की सीमा सरहद

बाढ़ में डूबती गयी

गांव शहर की रिहायसी नगरी

चपेट में लेते हुए

सिंध तक पहुंच गई

रिहंद बांध टूटने के कगार पर

× × ×

उधर कश्‍मीर के लेह में

बादल का फटना

जान माल की क्षति

सैकड़ों सेना के जवान

मिट्टी में दब गए

चीन में तबाही

ग्रीन लैंड क्षेत्र का कटकर

खिसकना!

क्‍या होगा? खण्‍ड प्रलय!

कामायनी की वह पंक्ति

हिम गिरि के उतंग शिखर पर

बैठा शिला की शीतल छांव

एक पुरूष भींगे नयनों से

देख रहा था

प्रलय प्रवाह।

Tuesday, November 30, 2010

सच कहता हूं

सच कहता हूँ

नियति में जो बदा था
वह भरपूर मिला
अभी जिन्‍दा हूं
जाने के आसार नहीं हैं
आकांक्षाएं जाती नहीं
मैं क्‍या करूं?
काम करता हूं
आपको जलन क्‍यों होता है?
बूढ़ा भले ही हो गया हूं
महाबूढ़ा नब्‍बे के दशक का
मेरे प्रति कलुष भावना नहीं रखें।
कुछ कर दिखाऊंगाा
तब दांतों तले अंगुली दबाएंगे
मैं इतराता नहीं हूं।
सच कहता हूं।


- गांव से

Monday, August 9, 2010

तितलियां

रंग-विरंगी तितलियों पर

बचपन में जब नजर जाती थी

दौड़ पड़ता था पकड़ने को

एक मनोहारी तितली को पकड़कर

घर लाता था धागा में

उसे बांध कर

उड़ाया करता था।

हाथ से धागा छूटा

तितली अपने संगियों को

खोज लेती थी।

रानी तितली की अदालत में

मुझे पेश होना पड़ा

गलती कबूल कर, उल्‍टे पांव उस दिन

भाग आया था।

मां को जताया नहीं था

आप पोर्टिकों में बैठा हूं

घर में बजती टीवी की आवाज

कानों तक आ रही है, सामने उजली

तितली की एक जोड़ी आती-जाती है

उनसे पूछता हूं, तुम्‍हारे संगी साथ

कहां हैं? तितली की जोड़ी रोने लगती है।

- गांव से

Tuesday, July 13, 2010

पारिवारिक संरचना

सगे छै: थे / तीन बचे हैं

सबसे छोटे भाई की

ओपन हार्ट सर्जरी हुई है

चौथे भाई अस्‍वस्‍थ हैं।

उनका बेटा डायलिसिस पर

गुर्दे की तलाश है

गुहार लगाता हूं

स्‍वयं 86वां पायदान पर

कृतिकार हूं। पढ़ेंगे

दादा के पत्र पोती के नाम

प्रकाशन संस्‍थान / नई दिल्‍ली की।

- गांव से