Friday, March 7, 2008

'मझधार' के लोकार्पण का आमंत्रण,९ मार्च

अगर आप पटना में रहते हैं तो ९ मार्च को समय निकालिए और मेरी नई पुस्तक 'मझधार' के लोकार्पण समरोह में आइये.मैं चाहता हूँ की इंटरनेट के जरिये मुझे जानने वाले मित्र इस समरोह में जरूर आयें.लोकार्पण समरोह सिन्हा लाइब्रेरी में ४ बजे निश्चित किया गया है.इस समरोह की अध्यक्षता श्री नृपेन्द्र नाथ गुप्त करेंगे.लोकार्पण दूरदर्शन के निदेशक शशांक के हाथों होगा.आपकी उपस्थिति से मुझे बढावा मिलेगा।
'मझधार' मेरा तीसरा कहानी संग्रह है.इसमें बारह छोटी-बड़ी कहानियाँ संकलित हैं.अधिकांश कहनियाँ विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं.मैं देश,दुनिया,समाज,घर,परिवार के बीच में जीवन बसर कर रहा हूँ.ये कहानियाँ उन्हीं के बीच से आई हैं.कहानियो के पात्रों के साथ मेरा तादात्म्य है.प्रच्छन्न रूप से मेरी आत्मीयता हर पात्र के साथ रहती है।
माँ का जैसा प्यार और लगाव अपनी संतान से होता है,ठीक वैसा ही मेरा लगाव अपने पात्रों के साथ रहता है.कुम्हार बर्तन बनाता है.कोई टेढ़ा-मेढ़ा भी हो जाता है.उसी प्रकार मेरी हर कहानी एक सांचे में ढली नहीं है,उनमें भिन्नता आपको मिलेगी.

Tuesday, March 4, 2008

भारत का भविष्य

एल ओ सी के दोनों ओर
कश्मीरी अवाम
दीवारें तोड़ने को तैयार
गले-गले मिलने को बेताब
पर
बचे-खुचे
चरमपंथी/दहशतगर्द
बस को/क्या चैन से
चलने देगे।
* * *
कश्मीर एक मसला है
पाकिस्तानी हुक्मरानों का
जो इसे अलग कर/रखना चाहते हैं
अमेरिका को एफ १६ विमान
दूसरी ओर एफ १८ विमान का पेशकश
क्या
अणु परमाणु मिसाइल के ज़माने में
यही सब होता रहेगा
क्या अमेरिका दिल से चाहता है
भारत एक विकसित देश बने
एशिया का सरताज बने
विश्व बाज़ार में जमे/यू एन ओ के
सुरक्षा परिषद् का सदस्य बने
वीटो पावर के साथ.

Monday, March 3, 2008

मेरा मन अब भी

ज़िंदगी एक धरोहर है
अमूल्य निधि है
इस पर अधिकार क्या सिर्फ़ मेरा ही है?
जैसे मैं चाहूँ
वैसे मनमानापन
इसके साथ करता रहूँ।
लगता है
सब कुछ कल की बात है
ज़िंदगी का चतुर्थांश
तो माँ-बाप के साया में
पला बढ़ा
आदमी बनाने का श्रेय उन्हीं का था।
उनके लिए
हमने क्या किया?
प्रतिदान तो उनने
चाहा नहीं
इस लम्बी ज़िंदगी में
बहुतों से संग छूट गया
कुछ रूठ गए
कुछ भगवान को प्यारे हो गए
आज अकेले खड़ा हूँ
मंजिल दिखायी देती है
चौथेपन की ज़िंदगी का
क्या भरोसा!
कब चली जाए
क्या अभी मुझे
सपना देखना चाहिए
कि यह कर लूँ!वह भी कर लूँ!
चाहत की कोई सीमा नहीं होती।