शबनम
तुम घर की बेटी हो
पराये घर
चली जाओगी
आये दिन तुम टांग
क्यों अराती हो
इस घर में
तुम्हारा कोई
वजूद नहीं बनता
"पापा! ऐसा क्यों?
बेटी का कोई वजूद
पिता के घर में
नहीं होता क्या?"
मम्मी ने कहा
हां शबनम
पापा ठीक कहते हैं
तुम्हारी शेखी
फबती नहीं
राहुल का अधिकार बनता है
जिसका अधिकार बनता है
वह कुछ नहीं बोलता
टांग नहीं अड़ाता है।
Monday, January 12, 2009
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3 comments:
समाज का कैसा दस्तूर है....जहां जन्म हुआ , वहां कोई अधिकार नहीं....बेटियों को रूलाने वाली रचना है ये।
पापा ठीक कहते हैं
तुम्हारी शेखी
फबती नहीं
राहुल का अधिकार बनता है
जिसका अधिकार बनता है
वह कुछ नहीं बोलता
टांग नहीं अड़ाता है।
बहुत marmik
है क्या कहूँ
आपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,
ब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
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