जीवन-मृत्यु
दोनों शाश्वत
मांगने से नहीं मिलते
कुछ हद तक
एक वश में
दूसरा औचक
एक आता है
एलानिया
दूसरी (मौत)
ले जाती है
चुपचाप
झटके में
मौत
कोई चाहता है!
कोई नहीं चाहता
जिन्दा रहकर
हम करते क्या हैं
कर्म, कुकर्म, सुकर्म
किसके लिये
अपनों के लिये
बाल-बच्चों के लिये
Thursday, January 1, 2009
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