आम आदमी / भगवान भरोसे जीता है
उसे शिकवा-शिकायत / किसी से नहीं होती
वन निर्द्वन्द्व विचरण करता है
जहां तबीयत होती है
रोजी-रोटी की तलाश में
निकल जाता है / सीधा-सपाटा
सपाट जिन्दगी / उसकी होती है
देवी-देवता, मंदिर के आगे / सिर झुका लेता है
राम मड़ैया में / जिन्दगी काट लेता है
अब कुछ-कुछ / बूझने लगा है
उसके फिनानसर / मुखिया-महाजन
बन जाते हैं
दस रुपये सैकड़े / माहवारी ब्याज पर
कर्ज लेकर / दूर-दराज
कमाने निकल जाता है
आम आदमी आज बेचैन नहीं है
चैन की जिन्दगी / बेहतर जिन्दगी
तनाव रहित जिन्दगी / उन्हें नसीब है
कभी पानी पीकर भी सो जाता है
बुरे दिनों के लिए
कुछ बचा नहीं पाता है
नीचे धामी / ऊपर भगवान
भरोसे जीता है / वह समझता है
खास आदमी की / दुनिया अलग होती है।
Friday, January 2, 2009
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1 comment:
Sahi kaha......
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