मुद्दत हुआ
पान छूट गया
कह नहीं सकता उसने मुझे छोड़ा
किन्तु जिन दिनों संगिनी जैसी थी
वही जगाती थी / वही सुलाती थी
मुंह कभी / खाली नहीं रहता था
X X X
पान लाचार / बना देता है
गुलाम बना देता है
कभी एहसास नहीं होता
कि पान ने गुलाम बना लिया
पान का बीड़ा
किसने लगाया
इससे भी उसका महत्व
बढ़ जाता है
पान प्रेयसी के हाथ का
पान तवायफ के हाथ का
पान प्रेमिका के हाथ का
एक अनजाने के हाथ का
एक परिचित पनहेरी के हाथ का
सबका मजा अलग-अलग होता है
X X X
पान के शागिर्द
चूना-कत्था नहीं
तो अकेले पान क्या रंग दिखा पाता
पान की गिलौरी
जो एक पैसा में मिलती थी
बारे आम अब एक टका की हो गयी है
कीमती गिलोरियां खाने वाले शौकीन
बिरले होते हैं
वह सर्वसुलभ नहीं है
किसी को मीठा पान भाता है
ज्यादा लोग पान के ऊपर
काला, पीला जाने क्या-क्या
मांगते हैं
पान की डंटी में चूना चाहिए
पनहेरी तबाह रहता है।
क्रमश:
Wednesday, January 14, 2009
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