Friday, January 30, 2009

चुनौतियां

कैसा है
वह बूढ़ा
पेट-पीठ
जिसका समान
बोली में दहाड़
दम-खम
बार-बार
उसे
वयोवृद्ध कहकर
कहने वाले
क्या समझते हैं!
वे
जवान ही रहेंगे
आवें
हाथ मिलावें
चुनौतियां
स्वीकार है।

Tuesday, January 27, 2009

अवमूल्यन

बचपन में
तांबे का ढेबुआ देखा
अधेला देखा
आधा आना, एक आना
चवन्नी, अठन्नी
एक रुपये का सिक्का देखा
वे अब चलन में नहीं हैं
क्यों?
ये सारे गुलामी के दौर के सिक्के थे
हम आजाद हैं
प्रजातंत्र में जीते-मरते हैं
इसका बचपन गया
जवानी आई-गई
दशमलव के सिक्के आये
आलमुनियम के दो, पांच, दस
बीस, पचीस, पचास के सिक्के
अवमूल्यन नहीं झेल पाये
पचीस, पचास का सिक्का
चल रहा था
वे भी चले गये
बड़े वेग से मनी वैल्यू
घटती गयी
रुपया वैल्यू डॉलर/पौंड से
आंकी जाने लगी
फिर मानव-मूल्य क्या रहा
हमारा-आपका रुतबा कहां गया
गली-कूची, राह चलते
जो दर्जा सम्मान मिला था
चला गया
क्यों गया!
हम भोथड़े हो गए
कुंद हो गए
आदमी के अंदर की करुणा
दया आदमियत
खतम हो गई
आज वैसी जिन्दगी के तराने
गाने में मशगूल हैं
थोड़ा रूक कर
सोचिए आप कहां हैं?
आपको कैसे तौला जाए
आपका मूल्य कैसे बढ़ेगा?
कद कैसे उठेगा?

Friday, January 23, 2009

दलाली

दलाली / एक धंधा है
कल्प वृक्ष है
दलाल सौदा पटाता है
दो को जोड़ता है
दोनों का खाता है
आराम से जीता है
उसका चरित्र
जैसा भी हो / क्या लेना-देना
काम से काम है / काम हुआ
दोस्ती टूटी
आप अपने घर / वह अपने घर
दलाली का धंधा
सर्वहारा का नहीं
इसमें श्रम नहीं लगता
बुद्धि कौशल का काम है
चतुराई का खेल है
दलाल की औकात होती है
वह कार मेनटेन करता है
मोबाइल रखता है
थ्री-एक्स पीता है / पिलाता है
जैसी पार्टी
वैसी खातिरदारी
जरूरत पडऩे पर
कालगर्ल भी पेश करता है
यह एक फलता-फूलता
धंधा है
इसकी दुनिया ही अलग है

Thursday, January 22, 2009

ओबामा

सर्वविदित है
पूर्व क्षितिज पर
सूरज निकलता है
एक सूरज
पश्चिम के क्षितिज पर
निकला है
बराक ओबामा
बन्धुओ उसे नमन करो
ओबामा की शक्तियों को पहचानो
चमत्कृत होने का गुर तो सीखें

Wednesday, January 21, 2009

मौत

मौत है क्या?
कभी गौर किया है
किसी ने कोई फतबा दिया है
कि मौत क्या है?
मौत से कोई डरता भी है
मौत कोई भूत तो नहीं
कोई चुड़ैल तो नहीं
मौत का पैगाम कहां से आता है
क्या आप उस पैगाम की प्रतीक्षा में हैं
मौत को क्या आप पछाड़ सकते हैं
मौत के साथ कोई खेलता भी है
सारी बेचैनी, सारी परेशानी का
एक ही रामवाण है
वह है मौत
कलह, विग्रह, फिंचाई, खिंचाई
प्रशंसा, निन्दा, सब का अन्त
कब होगा?
जब झटके में मौत आएगी
अपने आगोश में लेकर
चली जाएगी
राम नाम सत्य होता रहेगा।

Tuesday, January 20, 2009

मोह-माया-ममता

मोह-माया-ममता में
ठन गया
कौन बड़ा है
उधर से नारद जी
वीणा बजाते आये
पूछा, 'क्या बात है?Ó
तीनों ने कहा
'फरिया दीजिये
नारद जी।Ó
नारदजी पसोपेश में पड़ गये
तुम तीनों तो
सहोदर भाई-बहन हो
सिरजनहार की औलाद हो
वजूद-कद
तुम तीनों के समान हैं
एक-दूसरे से प्रतिबद्ध हो
निराकार हो
सृष्टि के नियामक हो
कौन बचा है
तुम तीनों से
आदमी को कौन कहे
जीव-जन्तु में विराजमान हो
सृष्टि को थामे हो
तुम तीनों के रूतबे
बरकरार हैं।

Monday, January 19, 2009

नोंक-झोंक

उनके बीच
बड़ा ढंग का
चलता था
न कोई तनाव
न कोई शिकायत
पर अब
यह क्या हो गया
क्यों बार-बार
वाक्-युद्ध
खिच-खिच
नोंक-झोंक
आए दिन
हो जाता है

X X X

उनकी शिकायत है
आप मुझे
बच्चों के बीच
क्यों झिरकते हैं
मुझे बुरा लगता है
इस घर में
मेरा क्या कोई वजूद नहीं
कोई क्या
विशेष अधिकार है
मैं चुप नहीं रह सकती।

Saturday, January 17, 2009

पर्दाफाश

पर्दाफाश किसका करूं ?
अपना
आपका
राजनेता का
दलितों का
सवर्णों का
नंगा तो
चौक-चौराहे पर
टीवी चैनलों पर
हम आप
होते ही हैं
आंखों में पानी
बचा कहां है!
सामाजिक संरचना
मतलबी हो गयी
सही बात
सत्य बात
गंवारा नहीं होती
एक की क्षमता के आगे
विश्व नतमस्तक होकर
रह गया
कुछ कर न सका
बिगाड़ न सका
आज वह जो चाहेगा
वही करेगा
सबकी बोलती बंद।

Friday, January 16, 2009

दर्द

जी! दर्द है
मीठा-मीठा
नहीं है
जानलेवा है
परेशान हूं
हैरान हूं
चिल्लाता हूं
संभालो
टीस रहा है
अंगर रहा है
फटता जा रहा है
बुझाता नहीं है
दर्द कहां है
यहां दाबो
इसे दाबो
नहीं-नहीं
इसे दाबो
त्राण कैसे मिलेगा
दवा राहत देती है
दवा बेअसर है
क्या करूं?
लोग सलाह दे जाते हैं
आराम कीजिए
दर्द बढऩे पर
बीवी को बुलाता हूं
कहता हूं
दर्द बांट लो
बीवी कहती है
दर्द बांटा नहीं जाता / झेला जाता है।

Thursday, January 15, 2009

पान 2

पानी की खासियत को
मैं क्या बखानूं
अलग-अलग कोण से
देखा जाता है
जिन दिनों वह / मेरी सहचरी थी
पानी की गिलौरी / मुंह में दाबे रहता था
तब की बात है / अहमद हुसैन जर्दा
मुंह लग गया था / वही फांकता था
कभी-कभी पान लगता भी था
घर में कुहराम मच जाता था
बीबी माथा पीटने लगती थी
खुमारी उतरते ही फिर उसी पान की
ख्वाहिश
जनाब
ताल ठोक कर कहता हूं
आप शपथ लेकर भी
पान छोड़ नहीं सकते
किन्तु अभी जरा चेतिये
पान के ऊपर जो
फरमाते हैं
वह जानलेवा है
आपको ले डूबेगा
बाल-बच्चा बीबी के लिए
पान के साथ
जहर नहीं फांकें

X X X

पान आज
मेरे साथ नहीं है
गोष्ठियों में
पान चबाते देखता हूं
अपने बीते दिनों को
याद करता हूं
सुना है, पान तो
स्वर्ग में भी नहीं मिलता है
तो क्या पान शुरू करूं?

Wednesday, January 14, 2009

पान 1

मुद्दत हुआ
पान छूट गया
कह नहीं सकता उसने मुझे छोड़ा
किन्तु जिन दिनों संगिनी जैसी थी
वही जगाती थी / वही सुलाती थी
मुंह कभी / खाली नहीं रहता था

X X X

पान लाचार / बना देता है
गुलाम बना देता है
कभी एहसास नहीं होता
कि पान ने गुलाम बना लिया
पान का बीड़ा
किसने लगाया
इससे भी उसका महत्व
बढ़ जाता है
पान प्रेयसी के हाथ का
पान तवायफ के हाथ का
पान प्रेमिका के हाथ का
एक अनजाने के हाथ का
एक परिचित पनहेरी के हाथ का
सबका मजा अलग-अलग होता है

X X X

पान के शागिर्द
चूना-कत्था नहीं
तो अकेले पान क्या रंग दिखा पाता
पान की गिलौरी
जो एक पैसा में मिलती थी
बारे आम अब एक टका की हो गयी है
कीमती गिलोरियां खाने वाले शौकीन
बिरले होते हैं
वह सर्वसुलभ नहीं है
किसी को मीठा पान भाता है
ज्यादा लोग पान के ऊपर
काला, पीला जाने क्या-क्या
मांगते हैं
पान की डंटी में चूना चाहिए
पनहेरी तबाह रहता है।

क्रमश:

Tuesday, January 13, 2009

इंतजार

मुद्दत से
साइकिल चला रहा हूं
घर-आंगन, राह-डगर
चल नहीं पाता
कष्ट होता है
तो
छड़ी का सहारा
लेना पड़ता है
किन्तु
साइकिल पर
जब बैठ जाता हूं
मनोबल बढ़ जाता है
सावधानी से उतरता हूं
पर कब तक
अभी अठासी चल रहा है
काया से जर्जर
झंखाड़
यह छ: फुट का आदमी
साइकिल चलाता रहेगा
तब तक / जब तक
एक दिन अंत नहीं होगा
इंतजार कीजिए
अभी आप के साथ
चल तो रहा हूं।

Monday, January 12, 2009

वजूद

शबनम
तुम घर की बेटी हो
पराये घर
चली जाओगी
आये दिन तुम टांग
क्यों अराती हो
इस घर में
तुम्हारा कोई
वजूद नहीं बनता
"पापा! ऐसा क्यों?
बेटी का कोई वजूद
पिता के घर में
नहीं होता क्या?"
मम्मी ने कहा
हां शबनम
पापा ठीक कहते हैं
तुम्हारी शेखी
फबती नहीं
राहुल का अधिकार बनता है
जिसका अधिकार बनता है
वह कुछ नहीं बोलता
टांग नहीं अड़ाता है।

Saturday, January 10, 2009

घर

चिडिय़ा
घोंसला बनाती है
आदमी
घर बनाता है
उद्देश्य
दोनों के समान
चिडिय़ा शाम होते ही
अपने घोंसलों में
घुस जाती हैं
आदमी के घर
लौटने का ठिकाना नहीं
पर
वह भी
जब घर लौटता है
बंद दरवाजे पर दस्तक देता है
स्विच दाबता है घंटी बजती है
प्रतीक्षा में जगी पड़ी बीवी
दरवाजा खोलती है तो
दोनों के मिलन का वह क्षण
कितना सुखद होता है
ऐसा प्राय: सबको
नसीब में मिला होता है
किन्तु जिस घर में
घुसते ही झिड़कियां मिलती हों
कैफियत तलब हो जाए
दरवाजे पर ही उस मर्द को
वह घर कैसा लगता होगा
घर काटता भी है
नसीब अपना-अपना होता है।

Thursday, January 8, 2009

छड़ी

छड़ी
संबल है
साथी है
भाई है
सहारा है
हाथ में रहने पर
भौंकते कुत्ते को
भगाती है
सांप मार सकती है
प्रहार होने पर
रक्षा करती है
प्रहार करने पर
मददगार होती है
बुढ़ापे का संबल है
बूढ़े का दोस्त है

Tuesday, January 6, 2009

नफरत

आदमी को आदमी से नफरत क्यों?
वह कौन था
जो जिन्दा जलाया गया
जिसने जलाया उसे क्या कहूं?
जल्लाद-राक्षस-निर्मम
उस आदमी का कसूर क्या था
यदि वह कसूरवार था
तो उसे कानून के हवाले
क्यों नहीं किया गया?

X X X

आदमी में नफरत कौन फैलाता है
नफरत की तालीम कहां मिलती है
क्या हम बर्बरता की ओर जा रहे हैं

X X X

अंत क्या होगा
हश्र क्या होगा
क्या हम कट मर जायेंगे
धर्म के नाम पर
धर्म ऐसा करने को नहीं कहता
नफरत का बीज किसने फैलाया
जहर क्यों बोया गया
जब बोया गया
तो काटना ही होगा

Saturday, January 3, 2009

जटायु

कभी गौर किया है
आकाश सूना- सूना
क्यों दिखता है
जटायु प्रजाति का
विलोप तो नहीं हो गया
गिद्ध
न नीचे, न ऊपर
न पेड़ों पर
कहीं नहीं दिखता
अंजाम क्या होगा!
उस दिन
घर लौट रहा था
सड़क किनारे
बूढ़ा बैल का रक्तिम

ढ़ांचा पड़ा था
दुर्गन्ध फैल रहा था
नाक पर रूमाल रख
जल्दी से आगे
बढ़ गया
इक्का- दुक्का कुत्ता
कौआ चोंच
मार रहा था
इक्कीसवीं सदी की यह त्रासदी
भविष्य में
क्या?
इन जानवरों के लिए
कब्रगाह बनवाना होगा?

Friday, January 2, 2009

आम आदमी

आम आदमी / भगवान भरोसे जीता है
उसे शिकवा-शिकायत / किसी से नहीं होती
वन निर्द्वन्द्व विचरण करता है
जहां तबीयत होती है
रोजी-रोटी की तलाश में
निकल जाता है / सीधा-सपाटा
सपाट जिन्दगी / उसकी होती है
देवी-देवता, मंदिर के आगे / सिर झुका लेता है
राम मड़ैया में / जिन्दगी काट लेता है
अब कुछ-कुछ / बूझने लगा है

उसके फिनानसर / मुखिया-महाजन
बन जाते हैं
दस रुपये सैकड़े / माहवारी ब्याज पर
कर्ज लेकर / दूर-दराज
कमाने निकल जाता है

आम आदमी आज बेचैन नहीं है
चैन की जिन्दगी / बेहतर जिन्दगी
तनाव रहित जिन्दगी / उन्हें नसीब है
कभी पानी पीकर भी सो जाता है
बुरे दिनों के लिए
कुछ बचा नहीं पाता है
नीचे धामी / ऊपर भगवान
भरोसे जीता है / वह समझता है
खास आदमी की / दुनिया अलग होती है।

Thursday, January 1, 2009

जीवन-मृत्यु

जीवन-मृत्यु
दोनों शाश्वत
मांगने से नहीं मिलते
कुछ हद तक
एक वश में
दूसरा औचक
एक आता है
एलानिया
दूसरी (मौत)
ले जाती है
चुपचाप
झटके में
मौत
कोई चाहता है!
कोई नहीं चाहता
जिन्दा रहकर
हम करते क्या हैं
कर्म, कुकर्म, सुकर्म
किसके लिये
अपनों के लिये
बाल-बच्चों के लिये