Tuesday, February 5, 2008

मुश्किलें

हर जगह
मुश्किलें बढ़ती जाती हैं
जीना हरम हो गया है
खतरा डेग-डेग पर
पाँव पसरे बैठा है
निगल जाने को।
सच भीड़ देख कर
जाम देख कर
कलेजा काँप जाता है।
* * *
रेलगाड़ी में भीड़
मंदिर में भीड़
पोस्ट ऑफिस में कतारें
बुकिंग काउंटर पर भीड़
सिनेमा टिकट लीजिये
धक्का-मुक्का
वैध-अवैध
ए सी स्लीपर में भी भीड़
उतरने के समय
निकालना मुश्किल
कहीं गिरे
तो गए काम से
बूढें हैं तो घर में रहें
अकेले सफर न करें।

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