इस बार
फँस गया
भोगने को जाड़ा
सुदूर
उत्तर बिहार के
एक गाँव में
जहाँ
आज भी
बिजली नहीं
ढिबरी जलती है
रात में
एक लालटेन भी नहीं
घूरा
अलाव जलते ही
जुट जाते हैं
नंग-धड़ंग
छोट-छोटे बच्चे
घूरा के चारों ओर
सांझ सवेरे
उनके बदन पर
मैली-कुचैली
फटी
गंजी है.तो क्या?
मैं अपने घर में
बंद हो जाता हूँ
अपनी कोठी में
जनरेटर चालू होता है
रौशनी बहर भीतर
फैल जाती है
हीटर चालू होता है
लांग कोट पहन लेता हूँ
टोपी मोजा डाल
लेता हूँ
रिमोट के सहारे
आराम से देखता हूँ
चुनावी दंगल
बदलते चैनलों में
रंग बिरंगे प्रोग्राम।
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