जैसे मैं हूँ
वैसे ही मुझे रहने दो
अब क्या होगा
यह आमूल चूल परिवर्तन
अब तो जाने की घड़ी
आ गई है।
मुझे नहीं चाहिए
लंबा चौड़ा दीवान पर
मोटा गद्दा
मेरी मुश्किलें बढ़ जाती हैं
मैं तख्त पर सोता था
तख्त ही चाहिए
मेरे कमरा में एसी नहीं चाहिए
उसमें सोने की आदत नहीं
जुकाम पकड़ लेता है
आल आउट/कछुआ छाप
नहीं जलाओ
माथा पकड़ लेता है
मुझे फ्रिज का पानी मत दो
गला पकड़ लेता है
हीटर मत जलाओ
अलाव दो
लिहाफ दो
धूप में बैठने दो.
1 comment:
आधुनिकता से ऐसी विरक्ति क्यों?
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