Friday, February 20, 2009

कॉलगर्ल

कॉल गर्ल
इनके-उनके घर की
बेटियां ही होती हैं
उनमें मौज-मस्ती से जीने की
एक हविस होती है
मां-बाप की / मजबूरी होती है
घर चलाने के लिए
बेटी को विवश करते हैं
प्रोत्साहित करते हैं
कॉल गर्ल बनने को।
महानगर में
यह कारोबार चलता है
बड़े-बड़े होटलों से
जुड़ी होती हैं
इंतजार करती होती है
कॉल की
कॉल आते ही
बुक होते ही
निकल पड़ती हैं
गंतव्य को
रात-रात भर के लिए
पौ फटते ही
लौटती होती हैं
अपने-अपने घरों के लिए
घर आते ही
अपने कमरे में
पसर जाती हैं
दस बजे दिन तक
एक कप चाय के साथ
मां जगाती है
उठ बेटी, उठ।

6 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत मार्मिक।

Anonymous said...

aap ki kavita naari kavita blog par daalna chahtee hun kripa kar kae email sae bhej dae kavita

email address freelanmcetextiledesigner@gmail.com

regds
rachna

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

अच्छा मसला उठाया है.

रंजू भाटिया said...

मार्मिक लिखा है आपने

MANVINDER BHIMBER said...

कॉल गर्ल
इनके-उनके घर की
बेटियां ही होती हैं
उनमें मौज-मस्ती से जीने की
एक हविस होती है

बहुत मार्मिक।

Bhushan said...

कुछ ही शब्दों में समेट दिया आपने "कालगर्ल" को। मन को छू गई आपकी प्रस्तुति।