Friday, February 27, 2009

चंदा मामा

आज नहीं
मुद्दत से
तुम चंदा मामा हो
हम तुम्हारे
भांजा हैं
मां तुम्हें - बुलाती थी
चंदामामा आरे आव s
बारे आव s
सोना के कटोरी में
दूध-भात
लेले आव s
आ जाते थे
दौड़े
दूध भात
खिला कर
चले जाते थे
तुम से
मिलने के लिए
मन मचल रहा था
चंद्रयान से
संदेशा भेजा था
तुमको मिल गया न!

X X X

धरती पर तिल
धरने की जगह नहीं
सब बडक़ा लोगों ने
हड़प लिया
झोपड़पट्टी वालों के लिए
फुटपाथ पर दिन
गुजारने वालों के लिए
जगह की एडवांस
बुकिंग कर दो
तुम रहम दिल हो
दीन-दुखियों के
रहबर हो।

2 comments:

संगीता पुरी said...

अच्‍छा लिखा है..;

daanish said...

purane sanskaar aur unke chhut`te ja rahe sarokaar ka achha naqshaa kheencha hai....aur sath hi aaj ke iss bhautik-vaad yug ki bhi khoob vyakhyaa ki hai. . . .
b a d h a a e e .
---MUFLIS---