दो के बीच चुंबन का आदान प्रदान होता है। दोनों का सेक्स एक भी हो सकता है। दोनों का दो सेक्स भी हो सकता है। माता-पिता और शिशु के बीच चुंबन का आदान प्रदान होता रहता है। उसके लिए काल-घड़ी नहीं होती। शिशु जब सजग हो जाता है। वह घर के लोगों को पहचानने लगता है, तो खुलकर 'पूची' लेता भी है। देता भी है। शिशु का चुम्मा लेने पर जो आनन्दानुभूति होती है। वह असीमित होती है।
यह तो पारिवारिक रिश्तों के बीच के चुंबन की बात हुई। अब जरा हटकर युगल जोड़ी के बीच चुंबन की बात करें। हमारी संस्कृति में खुलेआम दम्पति के बीच चुंबन का आदान प्रदान वर्जित है। नव दम्पति के बीच मदहोशी का आलम रहता है। उसका अपना कमरा होता है। सद्य विवाहित पति जब घर से निकलने लगता है तो वह परिणीता को आगोश में ले लेता है और एक छोटा-सा चुंबन ले लेता है फिर जब वह नवदम्पति सहबिस्तर होता है और रति क्रिया शुरू होती है, उस समय कैसा-कैसा क्या होता है, कितनी देर टिकता है सब अलग-अलग किस्म का होता होगा। इसमें जवानी से लेकर बुढ़ापे तक की जोड़ी की अपनी-अपनी कारगुजारियां अलग-अलग किस्म की होती है। अपनी-अपनी स्मृतियों में आज तक कैद होंगी। इस चुंबन प्रक्रिया पर कुछ लिख रहा हूं चूंकि अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध नहीं है। हम एक-दूसरों की संवेदना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का लाभ उठावें। आपका हमारा मन बहलाव का ब्लॉग और नेट से बढक़र दूसरा कोई विकल्प नहीं हो सकता। बंधुओं इस पर तो थीसिस लिखा जा सकता है।
Tuesday, February 17, 2009
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1 comment:
ज़रूर लिखिए. और उसके पूरे सांस्कृतिक सन्दर्भों को समेटते हुए लिखिए.
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