मन वेचैन है, अशं।न्त है
उमड़ घुमड़कर बातें
अ।ती.जाती हैं बहुत
अभिव्यिक्त नहीं मिल रही
कोरे कागज पर उतारू क्या...
क्या होगा... सारथक क्या है...
क्या सब कुछ मिथ्या है...
पिछले दिनों दरद से
बेतरह परेशान था
अ।ज सब कुछ मेरा खतम हो जाता
काश... बचपन लौट अ।ता
नया निरमाण होता
अ.अ। से शुरू करता...
Tuesday, August 21, 2007
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