कपार का लिखा
मिटता नहीं
देर सवेर
उसका सामना
करना पड़ता है
जो बीत गया
जो झेल गया
क्या वह
कपार का लिखा था...
उससे क्या अ।प संतुष्ट हैं...
इंसान कभी
संतुष्ट नहीं होता.
कभी.कभी
हम अ।प
कपार पीटने लगते हैं
कपार पीटने से
जो खोया
क्या वह अ।पको
मिल जाता है...
कुछ अनहोनी \ हो जाने पर
हर कोई कहता है
यह तो उनके \ कपार में लिखा था
इसीलिए किसी के \ गुजर जाने के बाद
कहा जाता है
उसके कपार में
वैसा ही लिखा था.
Friday, August 24, 2007
भाग्य
भाग्यवादी
सब कोई नहीं होता
बहुत इसे मानते हैं
वामपंथी
इसे स्वीकार नहीं करते हैं
दक्षिणपंथी
उस पर भरोसा करते हैं
सबके कपार में
अलग.अलग
कुछ लिखा होता है
जिसे ज्योतिषी पढ़ते हैं
किन्तु
ऐसे भी कर्मठ लोग हैं
जो नये सिरे से
अपने कपार पर लिखे को
मिटाते हैं
नया कुछ गढ़ लेते हैं
ऐसा तो\कभी.कभी
विरले लोगों से होता अ।या है
क्या साहित्यकार को
उसमें
शुमार कर सकते हैं ?
सब कोई नहीं होता
बहुत इसे मानते हैं
वामपंथी
इसे स्वीकार नहीं करते हैं
दक्षिणपंथी
उस पर भरोसा करते हैं
सबके कपार में
अलग.अलग
कुछ लिखा होता है
जिसे ज्योतिषी पढ़ते हैं
किन्तु
ऐसे भी कर्मठ लोग हैं
जो नये सिरे से
अपने कपार पर लिखे को
मिटाते हैं
नया कुछ गढ़ लेते हैं
ऐसा तो\कभी.कभी
विरले लोगों से होता अ।या है
क्या साहित्यकार को
उसमें
शुमार कर सकते हैं ?
जीत
पहले अखाड़ों में
दाव.पेंच चलता था.
पतंग उड़ाने में
दाव.पेंच चलता है
पर
अ।ज राजनीति
अखाड़ों में
दाव.पेंच चलता है
पार्टियों में दाव-पेंच
चलता है
साहित्यिक अखाड़ों में
दाव.पेंच चलता है
जीत
तेज. तर्र।रों की होती है .
दाव.पेंच चलता था.
पतंग उड़ाने में
दाव.पेंच चलता है
पर
अ।ज राजनीति
अखाड़ों में
दाव.पेंच चलता है
पार्टियों में दाव-पेंच
चलता है
साहित्यिक अखाड़ों में
दाव.पेंच चलता है
जीत
तेज. तर्र।रों की होती है .
ऊपरवाला
ऊपरवाला
कोई है क्या...
उसका नाम
हम क्यों लेते हैं...
कब लेते हैं
अ।फत विपत में
क्या कोई
रक्षा करता है
उसी को
ऊपरवाला कहते हैं क्या...
क्या यह \ अंध विश्वास है...
निःसहाय ही क्या
उनके नाम जपते हैं
गुहारते हैं
महाबली\जिनका सितारा
बुलंद है
ऊपरवाले का न नाम लेते हैं
न भरोसा रखते हैं.
कोई है क्या...
उसका नाम
हम क्यों लेते हैं...
कब लेते हैं
अ।फत विपत में
क्या कोई
रक्षा करता है
उसी को
ऊपरवाला कहते हैं क्या...
क्या यह \ अंध विश्वास है...
निःसहाय ही क्या
उनके नाम जपते हैं
गुहारते हैं
महाबली\जिनका सितारा
बुलंद है
ऊपरवाले का न नाम लेते हैं
न भरोसा रखते हैं.
Tuesday, August 21, 2007
व्यथा
चाहे दैहिक
चाहे मानसिक
व्यथा
बांटी नहीं जाती
भोगी जाती है
मापने का
कोई पैमाना नहीं होता
कोई ग्राफ भले ही
कोई
मनोचिकित्सक दिखला
सकता हो
अ।त्मीयजनों के बिछोह में
व्यथा होती है
जीवन के उतार.चढ़ाव में
व्यथा होती रहती है
यह एक ऐसी प्रिक्रिया है
जिससे हम अ।प
व्यिथत होते हैं
यह जीवन से जुड़ी है
किन्तु दिखती नहीं .
चाहे मानसिक
व्यथा
बांटी नहीं जाती
भोगी जाती है
मापने का
कोई पैमाना नहीं होता
कोई ग्राफ भले ही
कोई
मनोचिकित्सक दिखला
सकता हो
अ।त्मीयजनों के बिछोह में
व्यथा होती है
जीवन के उतार.चढ़ाव में
व्यथा होती रहती है
यह एक ऐसी प्रिक्रिया है
जिससे हम अ।प
व्यिथत होते हैं
यह जीवन से जुड़ी है
किन्तु दिखती नहीं .
मन
मन शैतान होता है
कभी.कभी बेकाबू
बेलगाम होता है.
बाल मन\ युवा मन
वृद्ध मन तीनों के अ।याम
अलग अलग होते हैं.
एक मचलता रहता है
दूसरा हवाई किला बनाता है
कुछ करना चाहता है
अ।काश में महल
बनाना चाहता है
तीसरा कभी अतीत में झांकता है
कभी पश्चाताप करता है
कि हमें वैसा नहीं करना चाहिए था
कभी खुश होता है
कि बहुत कुछ किया.
एक यह भी देख लेता
उसकी पूरति होने पर
पुनः मन में अ।ता है
एक यह भी हो जाता...
एक वह भी हो जाता
सिलिसला टूटता नहीं.
साधु.संत योगी.फकीर
तपस्वी.साधक
मन को काबू में रखते हैं
पर जब फिसलते हैं
तो उनका स्वरूप
बड़ा घिनौना होता है.
कभी.कभी बेकाबू
बेलगाम होता है.
बाल मन\ युवा मन
वृद्ध मन तीनों के अ।याम
अलग अलग होते हैं.
एक मचलता रहता है
दूसरा हवाई किला बनाता है
कुछ करना चाहता है
अ।काश में महल
बनाना चाहता है
तीसरा कभी अतीत में झांकता है
कभी पश्चाताप करता है
कि हमें वैसा नहीं करना चाहिए था
कभी खुश होता है
कि बहुत कुछ किया.
एक यह भी देख लेता
उसकी पूरति होने पर
पुनः मन में अ।ता है
एक यह भी हो जाता...
एक वह भी हो जाता
सिलिसला टूटता नहीं.
साधु.संत योगी.फकीर
तपस्वी.साधक
मन को काबू में रखते हैं
पर जब फिसलते हैं
तो उनका स्वरूप
बड़ा घिनौना होता है.
क्या ले जाऊंगा
तथ्य यही है
सब कुछ यहीं रह जाता है
शरीर पंचतत्व का है, नश्वर है.
प्राण पखेरू उड़ेगा
अगिन के आगोश में
यह निष्प्राण काया
भस्मीभूत हो जाएगी
विलीन हो जाएगी
बांट बखरा लग जाएगा
पंच तत्वों में साथ क्या ले जाउं...
कहां जाना है...
बीबी ने पूछा.
दूसरे लोक
मैंने कहा.
साथ कुछ नहीं जाता
हर कोई खाली हाथ अ।या है
खाली हाथ जाएगा
ऐसा ही कहा जाता है.
संगनी ने कहा
मेरा प्रश्न.पर तथ्य क्या है...
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा.
पत्नी ने कहा . संगनी ने कहा
मेरा प्रश्न.पर तथ्य क्या है...
तथ्य यही है
सब कुछ यहीं रह जाता है
शरीर पंचतत्व का है, नश्वर है.
प्राण पखेरू उड़ेगा
अगिन के आगोश में
यह निष्प्राण काया
भस्मीभूत हो जाएगी
विलीन हो जाएगी
बांट बखरा लग जाएगा
पंच तत्वों में
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा.
पत्नी ने कहा .
सब कुछ यहीं रह जाता है
शरीर पंचतत्व का है, नश्वर है.
प्राण पखेरू उड़ेगा
अगिन के आगोश में
यह निष्प्राण काया
भस्मीभूत हो जाएगी
विलीन हो जाएगी
बांट बखरा लग जाएगा
पंच तत्वों में साथ क्या ले जाउं...
कहां जाना है...
बीबी ने पूछा.
दूसरे लोक
मैंने कहा.
साथ कुछ नहीं जाता
हर कोई खाली हाथ अ।या है
खाली हाथ जाएगा
ऐसा ही कहा जाता है.
संगनी ने कहा
मेरा प्रश्न.पर तथ्य क्या है...
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा.
पत्नी ने कहा . संगनी ने कहा
मेरा प्रश्न.पर तथ्य क्या है...
तथ्य यही है
सब कुछ यहीं रह जाता है
शरीर पंचतत्व का है, नश्वर है.
प्राण पखेरू उड़ेगा
अगिन के आगोश में
यह निष्प्राण काया
भस्मीभूत हो जाएगी
विलीन हो जाएगी
बांट बखरा लग जाएगा
पंच तत्वों में
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा.
पत्नी ने कहा .
बचपन लौट आता
मन वेचैन है, अशं।न्त है
उमड़ घुमड़कर बातें
अ।ती.जाती हैं बहुत
अभिव्यिक्त नहीं मिल रही
कोरे कागज पर उतारू क्या...
क्या होगा... सारथक क्या है...
क्या सब कुछ मिथ्या है...
पिछले दिनों दरद से
बेतरह परेशान था
अ।ज सब कुछ मेरा खतम हो जाता
काश... बचपन लौट अ।ता
नया निरमाण होता
अ.अ। से शुरू करता...
उमड़ घुमड़कर बातें
अ।ती.जाती हैं बहुत
अभिव्यिक्त नहीं मिल रही
कोरे कागज पर उतारू क्या...
क्या होगा... सारथक क्या है...
क्या सब कुछ मिथ्या है...
पिछले दिनों दरद से
बेतरह परेशान था
अ।ज सब कुछ मेरा खतम हो जाता
काश... बचपन लौट अ।ता
नया निरमाण होता
अ.अ। से शुरू करता...
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