Friday, February 12, 2010

तितलियां

रंग बिरंगी तितलियों पर
बचपन में जब नजर जाती थी
दौड़ पड़ता था, पकड़ने को
एक मनोहारी तितली को पकड़कर
घर लाता था। धागा में
उसे बांधकर
उड़ाया करता था।
हाथ से धागा छूटा
तितली अपने संगियों को
खोज लेती थी।
X X X

रानी तितली की अदालत में
मुझे पेश होना पड़ा
गलती कबूल कर
उलटे पांव उस दिन
भाग आया था।
मां को जताया नहीं था।
X X X
आज पोर्टिकों में बैठा हूं।
घर में बजती टीवी की आवाज
कानों तक आ रही है।
सामने उजली तितली की एक जोड़ी
उड़ती आती हैं।
उनसे पूछतता हूं
तुम्‍हारे संगी-साथी
कहां है?
तितली की जोड़ी
रोने लगती है।

2 comments:

अनिल कान्त said...

वक़्त के साथ पीछे रह गये....

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत भावपूर्ण रचना है। सुन्दर!!