Thursday, February 11, 2010

प्रकृति के आंगन में

मन विभोर है
आम, अशोक, आंवला / कदम्‍ब, लीची
के पेड़ों को देखकर
कुछ क्षणों बाद सूर्यास्‍त होगा।
पश्च्मि आंगन के बराण्‍डे पर
खड़ा होना मुश्किल होगा
सूरज का तापमान चरम पर
विकल होता मन
बच्‍चे मद्रास गये हैं
अम्बिका भवानी की
कलश स्‍थापना होती है
इस सिलसिला का निर्वहन
करता आया हूं
धर्मपत्‍नी 'अम्‍मा' बूढ़ी हो गई।
आज हमदोनों ने इसे स्‍वीकार किया।
उनकी सीख की घूंट / सबकी तिलांजलि दें / सौंप दें बड़े को
गले नहीं उतर रही
क्‍या करूं ? कहता हूं,
मेरी उफली बजती रहेगी।

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