उधर अस्त होता सूरज
क्षितिज में गोटा लगता
इधर पेड़-पौधे
निस्पंद मौन
एक पत्ता भी नहीं हिलता
* *
जेठ की पूर्णिमा
पूरब की दिशा में चाँद
क्षितिज से उठता
अपने मौज में।
* *
कैसी उमस
जान लेवा गरमी
बदन पसीना से तरबतर
भीगी गंजी निचोड़ा
* *
सिर फट रहा है
बिजली गुल
जायें तो जाएँ कहाँ
नहाने का मन हुआ
नहाया जी भर
लेकिन थोड़ी ही देर में
फिर वही गरमी
वही उमस
बिजली का खस्ताहाल!
परेशां मन कहीं नहीं चैन!
Thursday, April 16, 2009
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