बाल सफ़ेद
मुंह में दांत नहीं
गाल पिचका -पिचका
आँखें कोटर में
धंसी-धंसी
झुर्रियां काया की
अजीबोगरीब-सी
डील-डौल
कद-काठी
बतलाती है
कभी इमारत
बुलंद थी
* * *
अतीत का पन्ना पलटो
यह वही चेहरा है
घुंघराले बाल
चंचल आँखें
छलकता प्यार
वाणी में मिश्री का घोल
गदरायी काया उन्नत उरोज
चाल गजगामिनी
सदाबहार
उसे देखते रहने का मन करता था
तो आज उस चेहरे के अतीत में झांको
सब्र-संतोष करो
चेहरा बदलता है आदमी का
दिल नहीं बदलता
Tuesday, April 14, 2009
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