Sunday, April 26, 2009
Thursday, April 16, 2009
गरमी
उधर अस्त होता सूरज
क्षितिज में गोटा लगता
इधर पेड़-पौधे
निस्पंद मौन
एक पत्ता भी नहीं हिलता
* *
जेठ की पूर्णिमा
पूरब की दिशा में चाँद
क्षितिज से उठता
अपने मौज में।
* *
कैसी उमस
जान लेवा गरमी
बदन पसीना से तरबतर
भीगी गंजी निचोड़ा
* *
सिर फट रहा है
बिजली गुल
जायें तो जाएँ कहाँ
नहाने का मन हुआ
नहाया जी भर
लेकिन थोड़ी ही देर में
फिर वही गरमी
वही उमस
बिजली का खस्ताहाल!
परेशां मन कहीं नहीं चैन!
क्षितिज में गोटा लगता
इधर पेड़-पौधे
निस्पंद मौन
एक पत्ता भी नहीं हिलता
* *
जेठ की पूर्णिमा
पूरब की दिशा में चाँद
क्षितिज से उठता
अपने मौज में।
* *
कैसी उमस
जान लेवा गरमी
बदन पसीना से तरबतर
भीगी गंजी निचोड़ा
* *
सिर फट रहा है
बिजली गुल
जायें तो जाएँ कहाँ
नहाने का मन हुआ
नहाया जी भर
लेकिन थोड़ी ही देर में
फिर वही गरमी
वही उमस
बिजली का खस्ताहाल!
परेशां मन कहीं नहीं चैन!
Tuesday, April 14, 2009
चेहरा
बाल सफ़ेद
मुंह में दांत नहीं
गाल पिचका -पिचका
आँखें कोटर में
धंसी-धंसी
झुर्रियां काया की
अजीबोगरीब-सी
डील-डौल
कद-काठी
बतलाती है
कभी इमारत
बुलंद थी
* * *
अतीत का पन्ना पलटो
यह वही चेहरा है
घुंघराले बाल
चंचल आँखें
छलकता प्यार
वाणी में मिश्री का घोल
गदरायी काया उन्नत उरोज
चाल गजगामिनी
सदाबहार
उसे देखते रहने का मन करता था
तो आज उस चेहरे के अतीत में झांको
सब्र-संतोष करो
चेहरा बदलता है आदमी का
दिल नहीं बदलता
मुंह में दांत नहीं
गाल पिचका -पिचका
आँखें कोटर में
धंसी-धंसी
झुर्रियां काया की
अजीबोगरीब-सी
डील-डौल
कद-काठी
बतलाती है
कभी इमारत
बुलंद थी
* * *
अतीत का पन्ना पलटो
यह वही चेहरा है
घुंघराले बाल
चंचल आँखें
छलकता प्यार
वाणी में मिश्री का घोल
गदरायी काया उन्नत उरोज
चाल गजगामिनी
सदाबहार
उसे देखते रहने का मन करता था
तो आज उस चेहरे के अतीत में झांको
सब्र-संतोष करो
चेहरा बदलता है आदमी का
दिल नहीं बदलता
Monday, April 13, 2009
लोग
नाम,ख्याति,शोहरतवाले
परवान चढ़ते रहते हैं
उन्हें परेशान करते हैं वे
जिसने स्वयं तो
कुछ नहीं किया
बर्बाद किया अपने को
जलते रहे,मरते रहे
भुनते रहे
उनसे तो बेहतर हैं वे
जो कुछ करना चाहते हैं
समाज के लिए
जिनके दिल में दर्द है
जिनका दृष्टिकोण व्यापक है
उदार हैं
वे मर मिटना चाहते हैं
उन निस्सहाय
पिछड़े के लिए
जिनकी कोई अहमियत नहीं होती।
परवान चढ़ते रहते हैं
उन्हें परेशान करते हैं वे
जिसने स्वयं तो
कुछ नहीं किया
बर्बाद किया अपने को
जलते रहे,मरते रहे
भुनते रहे
उनसे तो बेहतर हैं वे
जो कुछ करना चाहते हैं
समाज के लिए
जिनके दिल में दर्द है
जिनका दृष्टिकोण व्यापक है
उदार हैं
वे मर मिटना चाहते हैं
उन निस्सहाय
पिछड़े के लिए
जिनकी कोई अहमियत नहीं होती।
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