अ।ज फुरसत किसी को नहीं
अपनी-अपनी
समस्याओं में
सभी उलझे हैं
परेशान हैं
हैरान हैं
परेनियां
क्यों
बढ़ती जा रही है ?
जटिलताएं
बेशुमार हैं
असमानताएं अनेक हैं.
चैन नहीं है
संतोष नहीं है
अ।राम नहीं है
दिन दूना
रात चौगुना
बढ़ाने की
ख्वाहिश है.
तो फुरसत कहां है ?
दुनिया जहन्नुम में जाए
हम फूलते-फलते रहें.
Saturday, September 8, 2007
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