सच कहता हूँ
नियति में जो बदा था
वह भरपूर मिला
अभी जिन्दा हूं
जाने के आसार नहीं हैं
आकांक्षाएं जाती नहीं
मैं क्या करूं?
काम करता हूं
आपको जलन क्यों होता है?
बूढ़ा भले ही हो गया हूं
महाबूढ़ा नब्बे के दशक का
मेरे प्रति कलुष भावना नहीं रखें।
कुछ कर दिखाऊंगाा
तब दांतों तले अंगुली दबाएंगे
मैं इतराता नहीं हूं।
सच कहता हूं।
- गांव से
Tuesday, November 30, 2010
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1 comment:
आकांक्षा जब तक है
तब तक जिजीविषा है
और है
जीवन जीने की आन्तरिक ऊर्जा भी......
सच मानो भीतर यदि चाहत है जीने की
तो कोई हिला नहीं सकता
आपका
व आपके तेवर का एक मामूली पुर्जा भी
आप यों ही
बने रहें
ठने रहें
तने रहें
ताकि हमें मिले और मिलती रहे ऐसी उम्दा कवितायेँ.......
आपका धन्यवाद !
-अलबेला खत्री
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