Monday, April 5, 2010

ओछापन

ओछापन

   वे डायनिंग टेबुल पर बैठे थे। पोती से पूछा -'नाश्‍ता क्‍या है?' बना कुछ नहीं है, कार्न फ्लेक देती हूं।' उनने कहा 'नहीं, सुनकर बुखार लग जाता है।'

   उधर से बेटा दौड़े आये। उनसे पोती ने जोड़ दिया बाबा कार्न फ्लेक नहीं लेंगे। 'ब्रेड है।' 'हां।' वही दे दो।

   बटर लगा दो ब्रेड का स्‍लाइस आगे रख दिया गया। फिर कच्‍चा रसुगुल्‍ला परोसा गया, काला जामुन भी।

   बात आई दूध की! बाबा ने कहा, 'चार दिनों से दूध लेने का मौका नहीं मिला! इस पर बाबा की बात को लल्‍लू ने काटते हुए कहा, 'उसी दिन न दिया था।'

   बाबा चुप। बोर्न भिटा युक्‍त गरम-गरम दूध आगे आया।

   उनकी धर्मपत्‍नी, अम्‍मां, पास ही बैठी थीं। 'आपको क्‍या हो गया है। ऐसी बोली क्‍यों? रोज गीता पढ़ते हैं, रामायण का पाठ करते हैं। माला ठक ठकाते हैं। वाणी में मिठास नहीं आई! सब बेकार।

   बाबा चुपचाप अपने कमरे में चले गए। कहा कुछ नहीं।

   अन्‍तर्मन की आवाज सुनी। 'तुमको क्‍या हो जाता है। परिवार में तुम्‍हारी गरिमा है। ओछापन जाता नहीं। अम्‍मां की अनुसुनी न करो। तुमको नसीहत दी जायगी।.

 

1 comment:

Amitraghat said...

बढ़िया लगी लघुकथा....."