Sunday, September 28, 2008

कोसी की बाढ़:दूसरा दिन

दूसरा दिन
सुबह हुई। रात की सांस। पिछली घड़ी से भारी बरसा। बिना नहाये सुबह का मंत्र जाप। योगा - व्यायाम बी बी सी सुन नहीं पाया। समाचार कुछ,कुछ बिहार और बाहर देश की सुन पाया।
प्रात: की चाय। थोड़ा सत्तू। दिन में पूरा दूध का भोजन और विश्राम।
दिन होने के कारण आज चैन है। खतरा मंडरा रहा है। अपना घर के उत्तर की सडक़, प्रमुख जी का बगीचा ढाल का काम कर रहा। इसके उत्तर का पहले का निर्माण। पूरब से बोरिंग की भाीसी बचाव भी काकारण है। पोर्टिको के पूरब से अनवरत उत्तर से पानी वेग से भाग रहा है। अभी का यही आकलन है। बिजली नहीं है। रात अंधेरे में बीतेगी।
ऊपरी बेला पानी का नजारा देखने छत पर गया। बिन्देश्वरी सपरिवार, बेटी-दामाद लेकर पनाह में आ गए। कैसे उनकी पिछली रात कटी थी।
कुछ पढ़ा-लिखा। एक कविता हिंदी दिवस की प्रति साफ की। कुछ अखबारों को फोटो कराके भेजने के लिए। अपने घर के पूरब से पानी वेग में, दक्खिन की ओर। बाद में पोर्टिको के बरामदे के भीतर से भी पानी निकल रहा है तेज धार बनकर। यह गनीमत है। घर में पानी फिल्ली भर है। धीरे-धीरे बढ़ रहा है। आसन्न खतरे के मद्देनजर सावधानियां बरती गई हैं। दीवान खाली किया गया। किताबें, फाइल, ऊपर के रैक पर रखवाया।
संध्या का आगमन। कुछ पढ़ा। अखण्ड ज्योति का एक लेख अवश्य पढ़ लेना चाहिए। दीवान पर ही समय, अधिकांश समय। ट्रांजिस्टर मेरे जीने का आधार, देश-दुनिया से अवगत होता रहा। रात बरसा नहीं हुई। ऊपर-नीचे सभी घोड़ा बेच कर सोने जैसा -चैन से सोए। मैंने भी घर के भीतर का पानी घटते देखा।
भगवान बचावें। त्राहिमाम .... त्राहिमाम

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