Friday, December 28, 2007

एक खत बेटा के नाम

1

बेटा !
औकात से फाजिल
मुसीबतें झेलकर
जगह-जमीन बेचकर
अपना पेट काट कर
तुम्हें पढ़ाया-लिखाया
आदमी बनाया

2

अब मैं बूढ़ा हो गया
तुम्हारी मां, बूढ़ी हो गई
हम तुमसे पैसा नहीं चाहते
हमें कोई अभाव नहीं है
सरकार पेंशन देती है
हमारा काम अौल.फैल से
चल जाता है ।

3

तुम हमारी आंखों से दूर हो
बहुत दूर
जहां आना-जाना
आसान भी है
कठिन भी है
हमारी आंखें
भर आंखें
तुम्हें देखना चाहती हैं
तुम्हारी औलाद को
देखना चाहती हैं ।

4

वर्ष में क्या एक बार
एक दिन के लिए भी
हवाई जहाज से
तुम आ नहीं सकते
तुम आ जाते तो
हमारी छाती/चौड़ी हो जाती
हम बाग-बाग हो जाते ।

5

आज दूर-संचार
कम्प्यूटर का जमाना है
तुम फोन कर सकते हो
फैक्स कर सकते हो
एस.एम.एस. कर सकते हो
ई मेल कर सकते हो
पर क्यों तुम चुप हो !
तुम्हारी नजरें
क्यों बदल गईं?
आंखें इतनी मोटी
क्यों हो गई?
दिल
पत्थर का क्यों हो गया?

6

आपाधापी की जिन्दगी में
क्या, बाप-बेटे का
रिश्ता भी खतम हो जाता है?
ऐसा जमाना आ गया!

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