रंग-विरंगी तितलियों पर
बचपन में जब नजर जाती थी
दौड़ पड़ता था पकड़ने को
एक मनोहारी तितली को पकड़कर
घर लाता था ‘धागा’ में
उसे बांध कर
उड़ाया करता था।
हाथ से धागा छूटा
तितली अपने संगियों को
खोज लेती थी।
रानी तितली की अदालत में
मुझे पेश होना पड़ा
गलती कबूल कर, उल्टे पांव उस दिन
भाग आया था।
मां को जताया नहीं था
आप पोर्टिकों में बैठा हूं
घर में बजती टीवी की आवाज
कानों तक आ रही है, सामने उजली
तितली की एक जोड़ी आती-जाती है
उनसे पूछता हूं, तुम्हारे संगी साथ
कहां हैं? तितली की जोड़ी रोने लगती है।
- गांव से
1 comment:
यह गुम होने का दौर है। क्या तितली, क्या बिस्तुइया, सब के सब गुम हो रहे हैं। गरूर यह कि "हम' तो हमेशा बीच अंगना में टांग पसारकर बैठे रहेंगे। रिपोर्ट है कि तितली आदि के लुप्त होने के कारण भारत में पैदावार घट रही है,क्योंकि परागन में दिक्कतें आ रही हैं। अपने गांव की कहावत है- लार-चार के सब खत्म कर देंगे, तो बक्शीस क्या दोगे जी ! ओबाहवा तक बदल दी इस "सभ्य जानवर' ने ! कवि क्या करेगा, कहां तक लिखेगा, किसके लिए लिखेगा। वैसे कवि तो लिखेगा, आप ने भी खूब लिखा है। बधाई। बस।
http://thepublicagenda.in/fotofeature.php?subaction=showfull&id=1279113268&archive=&start_from=&ucat=7&
mauka mile to is link par jaroor jayen.
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