Thursday, January 17, 2008

आकाश के नीचे

खुले आकाश के नीचे
बैठा था
धूप तापने
नीले आकाश में
तैरते बादलों को
देख रहा था
मुझे लगा
यह नील गगन नहीं
नीला सागर है
जिसमें तैरते श्वेत बादलों के
छोटे-बड़े टुकड़े
छोटे-बड़े जहाज-सा है
नाव और किश्तियां हैं
उन पर सवार
नंगी आंखों से
दीखते नहीं
प्रकृति का बदलता
यह स्वरूप
कितना लुभावन
मनभावन था।

- सुखदेव नारायण

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