Monday, December 31, 2007

खत पापा के नाम

पापा
पुराने जमाने की बातें
क्यों करते है?
हमसे क्या खोजते हैं
यहां का आलम यह है
कि
दम मारने को फुर्सत नहीं
देर रात घर लौटता हूं
नींद की गोली लेकर
सो जाता हूं
अगली सुबह फ्लाइट लेने की
मजबूरी रहती है
x x x
मां-बाप से उऋण होने की
जमाना चला गया
माना कि
आप नहीं होते तो
मेरा
शिखर पर पहुंचना
मुश्किल था/नामुमकिन था
पर आपने फर्ज निभाया
उसे भुनावे नहीं!
x x x
मैं भी
फर्ज निभा रहा हूं
नेहा को अमरीका भेजा है
मण्टु इंगलैंड गया है
x x x
आज का बेटा
श्रवणकुमार
नहीं बन सकता
माथा न पीटें
लेकिन कहीं
आप अस्वस्थ होंगे
बिस्तर पर गिरेंगे
तो/नर्स आपकी सेवा करेगी
आवश्यकता पड़ी
तो
अपोलो में इलाज होगी
अमरीका से
डॉक्टर बुलाने का
सामर्थ्य रखता हूं
और
क्या चाहिये?

Friday, December 28, 2007

एक खत बेटा के नाम

1

बेटा !
औकात से फाजिल
मुसीबतें झेलकर
जगह-जमीन बेचकर
अपना पेट काट कर
तुम्हें पढ़ाया-लिखाया
आदमी बनाया

2

अब मैं बूढ़ा हो गया
तुम्हारी मां, बूढ़ी हो गई
हम तुमसे पैसा नहीं चाहते
हमें कोई अभाव नहीं है
सरकार पेंशन देती है
हमारा काम अौल.फैल से
चल जाता है ।

3

तुम हमारी आंखों से दूर हो
बहुत दूर
जहां आना-जाना
आसान भी है
कठिन भी है
हमारी आंखें
भर आंखें
तुम्हें देखना चाहती हैं
तुम्हारी औलाद को
देखना चाहती हैं ।

4

वर्ष में क्या एक बार
एक दिन के लिए भी
हवाई जहाज से
तुम आ नहीं सकते
तुम आ जाते तो
हमारी छाती/चौड़ी हो जाती
हम बाग-बाग हो जाते ।

5

आज दूर-संचार
कम्प्यूटर का जमाना है
तुम फोन कर सकते हो
फैक्स कर सकते हो
एस.एम.एस. कर सकते हो
ई मेल कर सकते हो
पर क्यों तुम चुप हो !
तुम्हारी नजरें
क्यों बदल गईं?
आंखें इतनी मोटी
क्यों हो गई?
दिल
पत्थर का क्यों हो गया?

6

आपाधापी की जिन्दगी में
क्या, बाप-बेटे का
रिश्ता भी खतम हो जाता है?
ऐसा जमाना आ गया!