Monday, February 11, 2008

हक्का-बक्का

नॉन-स्टॉप बस एक जगह रुकी.कंडक्टर ने समझा कोई हजारीबाग की सवारी होगी.बस के भीतर आगे एक महिला,पीछे से उसका पति जैसा जवान सफ़ेद कपडों में बढ़ा.कंडक्टर ने पूछा,कहाँ जाना है,उसने पास के किसी गाँव का नाम लिया.कंडक्टर ने कहा,उतरिये..यह एक्सप्रेस बस है.तुरंत उस युवक का तेवर बदला और उसने कहा,बदतमीज!पहचानते नहीं.मैं स्टाफ हूँ.बड़ा हाकिम हूँ.चुपचाप बैठो.ड्राईवर से कहा,बस बढाओ भाई।

कंडक्टर हक्का-बक्का.उसकी बन्दर घुड़की पर ही उसे लगा कि हाथापाई होगी.कंडक्टर अपने ढंग से उसका प्रतिवाद करता रहा.सारे मुसाफिर दोनों की बातें सुनते रहे.किसी मुसाफिर ने उनके बीच आने का,इस झमेले को छुड़ाने की कोशिश नहीं की.सारे मुसाफिर मूक दर्शक बने रहे.कंडक्टर मेरी बगल में आकर बैठ गया.मैं भी चुप रह.एक दो और पैसेंजर से उसने भाडा लिया.टिकट नहीं दिया।

इस बीच झपकियाँ लेते-लेते मैं लंबी नींद में चला गया.मेरी आँखे खुलीं तो जहाँ वह महिला बैठी थी,वह नहीं दिखी.मैंने समझा वह जुझारू,दबंग आदमी,शेखीबघारने वाला उतर गया होगा.कंडक्टर मुँह बंद कर चुका था।

फिर मैंने कंडक्टर से पूछा,"क्या आपने उन दोनों से भाड़ा मांगने का जुर्रत उठाया.उसने कहा,"नहीं"।

मैंने पूछा."क्या वह आपका स्टाफ सही में था.""नहीं कह सकता."उसका जवाब.आगे उसने कहा,"ऐसा हजारीबाग की तरफ होता,तो विस लोगों से पैसेंजर भी दो हाथ देख लेते हैं।"

फिर आज की अराजकता की बातें हुईं.कंडक्टर उनके उतर जाने के बाद,कमीज झाड़कर,अपनी शेखी बघारने लगा.

No comments: