Wednesday, February 6, 2008

परिताप

ब्रह्मवेला,
दरवाजा खोलता हूँ
पोर्टिको का हेडलाइट
बुझाता हूँ
पूरब दिशा की ओर
निहारता हूँ
पौ फट रहा है
परिसर के
आम,शीशम,कदंब
आंवले के पेड़
अभी जगे नहीं हैं
आंवले की पत्तियां
मुंदी-मुंदी हैं
* * *
पर
ये सारे वृक्ष
आज जवान हो गए
और मैं बूढा हो गया हूँ
* * *
उन दिनों
जब वे बिरवे थे
पोतियों के नन्हें-नन्हें हाथों ने
इन्हें सींचा था
* * *
अब वे पराये घर
चली गयी हैं
यहाँ से टूट गया
उनका
नेह-नाता

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